22-Jan-2023 08:45 PM
1872
जयपुर, 22 जनवरी (संवाददाता) भारत की प्रत्येक विचारधारा ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, चाहे बौद्ध, नाथपंथी, कबीरदास या तुलसीदास सभी ने इसके खिलाफ बीड़ा उठाया है लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी आज हमें जातिवाद पर बात करनी पड़ रही है।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) में रविवार को लेखक सूरज येंग्ड़े की किताब एवं कास्ट मैटर पर आधारित सत्र में लेखकों एवं साहित्यकारों ने यह विचार व्यक्त किए। जेएलएफ के चौथे दिन के पहले इस सत्र ने श्रोताओं को समाज की वास्तविकता से रूबरू कराया, जिसमें श्री येंगड़े से वरिष्ठ अकादमिक सुरेंदर एस. जोधका ने चर्चा की और श्री जोधका ने भारत में जातिवाद के इतिहास पर रौशनी डालते हुए कहा, “2023 में आज भी हमें जातिवाद पर बात करनी पड़ रही है। भारत को आज़ाद हुए 75 साल हो गए हैं, हालाँकि आज जाति के बारे में जो बात हो रही है वो 70 और 80 के दशक से अलग है।” उन्होंने मंडल मिशन के माध्यम से हरिजन, ओबीसी और दलितों के संघर्ष को व्यक्त किया।
लम्बे समय से जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले लेखक और विचारक श्री येंग्ड़े ने विजय सिंह पथिक सहित उन सभी विचारक जिन्होंने इस दिशा में काफी काम किया का आभार व्यक्त किया और कहा कि भारत की प्रत्येक विचारधारा ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, फिर वो चाहे बौद्ध हों, नाथपंथी, कबीरदास या तुलसीदास... सभी ने इसके खिलाफ बीड़ा उठाया है।
‘अज्ञेय, निर्मल वर्मा’ पर आधारित एक अन्य सत्र में लेखक अक्षय मुकुल और विनीत गिल से प्रज्ञा तिवारी ने संवाद किया। अक्षय मुकुल ने साहित्यकार अज्ञेय साहित्य पर गहन शोध की है और उनकी कई किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। विनीत गिल ने साहित्यकार निर्मल वर्मा पर गहन कार्य किया है। सत्र की शुरुआत में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका विद्या शाह ने अज्ञेय की कविता, ‘चले चलो ऊधो’ को अपनी सम्मोहक आवाज़ में प्रस्तुत किया।
अज्ञेय के बारे में बात करते हुए अक्षय मुकुल ने कहा, “अज्ञेय में बेचैनी थी... उन्होंने प्रेमचंद से लेकर सभी महान साहित्यकारों को पढ़ा और सराहा था, लेकिन उन्हें कुछ और कहना था। उनकी यह बेचैनी उनके उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ में व्यक्त होती है।” तार-सप्तक के माध्यम से अज्ञेय ने कविता के नए स्वरुप को पेश करने का बीड़ा उठाया।
निर्मल वर्मा के लेखन के बारे में बात करते हुए, विनीत गिल ने कहा, “वर्मा ‘आधुनिकीकरण’ से प्रभावित थे। अपने समकालीन साहित्यकार अज्ञेय से वे सहमत नहीं थे। वो ‘नई कहानी’ के प्रति आकर्षित थे।” अज्ञेय और निर्मल वर्मा के साहित्य में सबसे बड़ा फर्क था कि अज्ञेय का फोकस जहाँ ‘आदर्शवादी यथार्थ’ पर था, वहीं वर्मा ‘आंतरिक यथार्थवाद’ के पक्षधर थे।
पुरस्कृत लेखिका चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी ने लेखिका और मौखिक इतिहासकार आँचल मल्होत्रा से ‘इंडिपेंडेंस’ सत्र में संवाद किया। यह सत्र चित्रा के हालिया प्रकाशित उपन्यास, इंडिपेंडेंस पर आधारित था। उपन्यास के बारे में बात करते हुए चित्रा ने कहा, “अगर हमें राष्ट्र निर्माण की कहानी ही याद नहीं रहेगी, तो हम आज़ादी का मतलब कैसे समझ पाएंगे। ये दुखद है कि अब हम इसके बारे में नहीं पढ़ते।” महिला आधारित उपन्यास लिखने की बात पर उन्होंने कहा, “एक महिला होने के नाते महिलाओं की कहानी लिखना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।| मैं उन महिलाओं की बात कहना चाहती हूँ जिन्होंने आज़ादी, विभाजन, हिंसा और अपमान को झेला... हर महिला असाधारण है और हर कहानी खास और मौलिक है।...////...