01-Aug-2023 08:44 PM
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नयी दिल्ली, 01 अगस्त (संवाददाता) मीडिया और मनोरंजन जगत के चर्चित नाम और लेखनी के धनी आशीष कौल की पुस्तक '1967-कश्मीर का परमेश्वरि आंदोलन ' का मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने विमोचन किया।
यह रचना एक गुमशुदा कश्मीरी पंडित पुत्री की तलाश और उसे वापस उसकी माँ तक पहुंचाने के लिए कश्मीरी पंडित समुदाय के ऐतिहासिक जन जागरण आंदोलन का एक जीवंत दस्तावेज़ है। एक ऐसा आंदोलन जिसने कश्मीरी पंडितों का पौरुष भी देखा और देश के प्रति उसकी प्रतिबद्धता भी। लेखक का दावा है कि 1990 में कश्मीरी पंडितों के जीवन में जो अमावस आयी, उसका कृष्ण पक्ष इस आंदोलन के खात्मे के साथ ही शुरू हो गया था। उन्होंने इसके परिचय में कहा है, ‘यह केवल कोई कहानी नहीं है, बल्कि समय के उस करवट की दास्ताँ है कि जिसके बाद घाटी में घृणा और अलगाव काबारूद जमा होता चला गया। ”
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 183 पृष्ठ की इस किताब का आमुख जाने-माने साहित्यकार और शिक्षाविद डॉक्टर सच्चिदानंद जोशी ने लिखा है और आवरण पृष्ठ चित्रकार नरेंद्र पाल सिंह द्वारा बनाया गया है। डॉ. जोशी का मानना है कि " इस किताब को, घटनाओं को समझते हुए पढ़ा जाए तो हरभारतीय देख पाएगा कि इतिहास में चूक कहाँ हुई? ”
पुस्तक का कथानक “ सुंदर श्रीनगर के रैनावारी इलाके में 1967 में एक शाम, एक लड़की अचानक गायब होने की घटना पर केंद्रित है। उस घटना पर एक खबर आती है कि लड़की है तो सही, पर लौटेगी नहीं। उस घटना के बाद ‘हमारी बेटीवापस करो’के नारों की गूंज के साथ कश्मीर घाटा में एक आंदोलन शुरू होता है और वहां अल्पसंख्यकों के लिए वातावरण में सकारात्मक बदलवा दिखता है। पुस्तक के विवरण में कहा कि बाद में राजनीति की नयी चौसर बिछी और कश्मीर केइतिहास में 1989-90 का अध्याय जुड़ गया।
वर्ष 1967 के आंदोलन की 2023 में अब चर्चा और किताब क्यों? इस सवाल के जवाब में बिना एक पल भी गंवाए आशीष कहते हैं कि साल 1967 और ‘कश्मीर का परमेश्वरि आंदोलन’ ही वह चाभी है जिससे 1990 की घटनाओं पर पड़ा ताला खुलेगा।
कौल जी एंटरटेनमेंट के सारेगामा, अंताक्षरी, बिजनेस बाजीगर और जी सिने एवार्ड्स के लिए काम कर चुके हैं। उन्होंने रिफ्यूजी कैंप, रक्त गुलाब, दिद्दा दी वारियर क्वीन और स्त्रीदेश (हिंदी और अग्रेजी) जैसी चर्चित पुस्तकें लिखी हैं।...////...