ब्रज में अक्षय तृतीया से ठाकुर जी को होने लगता है शीतलता का अहसास
01-May-2022 03:01 PM 1924
मथुरा, 01 मई (AGENCY) उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में पौराणिक नगरी मथुरा स्थित ठाकुर जी के मंदिरों में अक्षय तृतीया से मौसम की करवट लेते ही ठाकुर जी को शीतलता का अहसास कराने के लिए पूजा विधि भी बदल जाती है। इस दौरान ब्रज के मंदिरों में ठाकुर जी को इस तिथि से चन्दन के वस्त्र धारण कराना प्रारंभ हो जाता है, साथ ही शीतलता का अहसास कराने वाले पुष्पों के फूल बंगले बनने लगते हैं और ठंडी तासीर वाला भोग भी ठाकुर जी को अर्पित किया जाने लगता है। गौरतलब है कि अक्षय तृतीया को साल का सबसे पवित्र दिन माना जाता है और इस दिन मुख्य विग्रह को शीतलता देने के लिए ब्रज के अधिकांश मन्दिरों में ठाकुर जी को चन्दन के वस्त्र धारण कराए जाते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी मन्दिर तो इस दिन ठाकुर जी के चरण दर्शन होते हैं। पौराणित मान्यताओं के मुताबिक अक्षय तृतीया को पवित्रतम दिन मानने के पीछे कई महत्वपूर्ण घटनाओं का जुड़ा होना है। भारतीय संस्कृति के विद्वान तथा गोवर्धन स्थित रामानन्द आश्रम के महन्त शंकरलाल चतुर्वेदी ने बताया कि इसी दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का अवतरण हुआ था। सतयुग के बाद इसी दिन त्रेतायुग की शुरूआत हुई थी। जुआ में हारने के बाद इसी दिन पाण्डवों के वनवास जाने के पूर्व श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय पात्र इसलिए दिया था कि जंगल में उन्हें खाने की कमी न रहे। इसी दिन से वेदव्यास ने महाभारत ग्रन्थ की रचना शुरू की थी।यह भी कहा जाता है कि इसी पावन दिवस पर गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था तथा इसी दिन से जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा शुरू होती है। स्वामी हरिदास पर कई पुस्तकों के लेखक एव बांके बिहारी मन्दिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने अक्षय तृतीया के दिन ब्रज के तीन महान संतों के समागम की अनूठी घटना का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि एक बार अखतीज के दिन स्वामी हरिदास, श्री हरिवंश एवं हरिराम व्यास जी सत्संग में बैठै हुए थे। अचानक हरिदास से हरिवंश ने उनके आराध्य बांके बिहारी के चरण दर्शन अपने आराध्य श्री राधाबल्लभ जी महराज के रूप में कराने का आग्रह किया तो उनके प्रति सम्मान दिखाते हुए स्वामी हरिदास ने बिहारी जी का श्रंगार राधाबल्लभ के रूप में करते हुए अपने आराध्य के चरण दर्शनों सहित सर्वांग दर्शन उस समय संत समुदाय को कराये। बिहारी जी महराज के दर्शन राधा बल्लभ जी के स्वरूप में करके हरिवंश जी इतने भाव विभोर हो गए कि उन्होंने निश्चय किया कि हर वर्ष पौष माह में मकर संक्रांन्ति के दिन राधाबल्लभ जी के दर्शन बिहारी जी महराज के चरण छुपे स्वरूप में कराएंगे। उनका कहना था कि तभी से अखतीज के दिन बिहारी जी महराज के दर्शन राधाबल्लभ जी स्वरूप में तथा मकर संक्रांति पर राधा बल्लभ जी के दर्शन चरण छिपे बिहारी जी महराज के स्वरूप में होते हैं। इस दिन जहां राजभोग के समय बिहारी जी महाराज के चरण दर्शन होते हैं, वहीं शयनभोग में बिहारी जी महाराज के सर्वांग दर्शन होते है। इस दिन ब्रज के सप्त देवालयों समेत अधिकाश मन्दिरों में ठाकुर को शीतलता प्रदान करने के लिए चन्दन के अलंकारिक वस्त्र धारण कराए जाते हैं तथा ठाकुर जी को शीतलता प्रदान करने के लिए उनके चरणों के पास चन्दन के गोले रखे जाते हैं। इस दिन भोग में शीतलता प्रदान करनेवाले पदार्थ जैसे खरबूजा, ककड़ी , शरबत, अन्य फल, ठंढाई और सत्तू का प्रयोग किया जाता है। राधा दामोदर मन्दिर के सेवायत आचार्य बलराम गोस्वामी के अनुसार मन्दिर में राधा वृन्दावन चन्द्र, राधादामोदर, राधा माधव एवं राधा छैलचिकनिया विगृह में चन्दन लेपन एवं उनके चन्दन के वस्त्र तैयार करने के लिए बहुत अधिक चन्दन की आवश्यकता होती है। इसलिए होली के बाद से ही मन्दिर में चन्दन का लेप तैयार करने का काम शुरू हो जाता है तथा भोग में ठाकुर जी को शीतल सामग्री अर्पित की जाती है। इस दिन से वृन्दावन के सप्त देवालयों में फूल बंगला का बनना भी शुरू हो जाता है। दानघाटी मन्दिर गोवर्धन के सेवायत आचार्य पवन कौशिक ने बताया कि अक्षय तृतीया पर ठाकुर जी को चन्दन का लेप लगाकर उसी से श्रंगार किया जाता है तथा भोग में शीतल पदार्थों उन्हें अर्पित किये जाते हैं।इस दिन मन्दिर में विशेष फूल बंगला भी बनता है। वृन्दावन स्थित कृष्ण बलराम मन्दिर (इस्काॅन) में तो चन्दनयात्रा का त्योहार 21 दिन तक मनाया जाता है। इस्काॅन वृन्दावन के पीआर डायरेक्टर विमल कृष्ण दास ने बताया कि चन्दन यात्रा में ठाकुर जी को चन्दन का लेप अर्पित करने का अवसर मिलता है। चूंकि 21 दिन तक ठाकुर जी को चन्दन लेपकर उनके वस्त्र भी चन्दन के तैयार किये जाते हैं इसलिए भक्तों को मलयागिरि चन्दन का लेप मन्दिर में ही तैयार करने का अवसर मिलता है। कार्यक्रम के समापन से एक सप्ताह पूर्व से चन्दन में नीला रंग मिलाकर श्यामसुन्दर को चन्दन का लेप लगाते हैं जिससे श्यामसुन्दर का हल्का नीला विग्रह दिखाई पड़े। इस दौरान भोग में ठाकुर को शीतल पदार्थों को अर्पित किया जाता है। समापन के अवसर पर बेला के फूल का फूलबंगला बनाया जाता है। कुल मिलाकर अक्षय तृतीया के दिन से ब्रज के मन्दिरों में ठाकुर जी को चन्दन लेपन, शीतल भोग और फूल बंगले से शीतलता प्रदान करने की होड़ सी लग जाती है।...////...
© 2025 - All Rights Reserved - Youth18 | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^