भारत में प्रजनन संबंधी समस्या गंभीर रूप ले रही है: यूएनएफपीए
10-Jun-2025 09:09 PM 8923
नयी दिल्ली, 10 जून (संवाददाता) भारत की जनसंख्या में 36 प्रतिशत यानी हर तीन में से एक वयस्क अनचाहे गर्भ से परेशान है तो वहीं दूसरी तरफ लगभग 30 प्रतिशत ऐसे लोग भी हैं जिनके लिये मातृत्व सपना ही बनकर रह जाता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए )की ‘विश्व जनसंख्या की स्थिति 2025’ की आज यहां जारी एक रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में यह कटु सत्य सामने आया है। यूएनएफपीए की कार्यकारी निदेशक डाॅ नतालिया कानेम ने वर्चुअल मीडिया संगोष्ठी में यह रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि ज्यादातर लोग अपनी पंसद के मुताबिक ‘परिवारों’ का गठन नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा, “ यह गर्भधारण में आने वाली परेशानियों से जुड़ा है, जिसका जवाब लोगों की जरूरतों को पूरा करने से जुड़ा है। इसमें परिवार के लिए भुगतान वाली छुट्टी, किफायती प्रजनन संबधी देखभाल और सहायक साथी का होना शामिल है। ” ‘वास्तविक प्रजनन संकट: बदलती वैश्विक परिस्थितियों में प्रजनन एजेंसी की खोज’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में दृष्टिकोण में बदलाव पर जोर दिया गया है, जिसे जन्म दर में गिरावट के बारे में चिंताओं से लोगों का ध्यान हटाकर प्रजनन लक्ष्यों और उसे प्राप्त करने की उनकी क्षमता के बीच बढ़ रहे अंतर को कम करना होना चाहिए। इससे यह तर्क सामने आता है कि वास्तविक संकट अधिक जनसंख्या या कम जनसंख्या के बारे में नहीं है, बल्कि अधूरी प्रजनन आवश्यकताओं और इस बारे में निर्णय लेने की आजादी न होना है। यह रिपोर्ट भारत सहित 14 देशों में किये गये यूएनएफपीए - यूजीओवी सर्वेक्षण पर आधारित है। इसमें यह बताया गया है कि प्रजनन संबंधी निर्णय लेना जैसे की सेक्स के बारे में स्वतंत्र और सूचित विकल्प, गर्भनिरोधक और संतानोत्पत्ति सबसे महत्वपूर्ण फैसले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 31 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से नीचे गिर गयी है। हालांकि बिहार (3.0), मेघालय (2.9) और उत्तर प्रदेश (2.7) में यह अभी भी बढ़ी हुयी ही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु, केरल और दिल्ली में खासकर शिक्षित मध्यम वर्ग की महिलायें या वैवाहिक जोड़े लागत और कार्य-जीवन संघर्ष के कारण बच्चे को जन्म देने में देरी करते हैं या फिर बच्चे पैदा करते ही नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय असुरक्षा ही वांछित परिवार के सदस्यों की संख्या में सबसे आम बाधा है। लगभग 40 प्रतिशत लोग वित्तीय सीमाओं का हवाला देते हैं, उसके बाद नौकरी की असुरक्षा (21 प्रतिशत), अपर्याप्त आवास (22 प्रतिशत), और बच्चों की देखभाल संबधी सुविधाओं की कमी (18 प्रतिशत)। सामान्य खराब स्वास्थ्य (15 प्रतिशत), बांझपन (13 प्रतिशत) और सीमित मातृ स्वास्थ्य सेवा (14 प्रतिशत) जैसी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां भी इस बाबत भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा, भविष्य के बारे में जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक अस्थिरता जैसी चिंतायें लोगों को बच्चे पैदा करने से हतोत्साहित कर रही हैं। रिपोर्ट में एक बयान के हवाले से कहा गया है कि पाँच में से लगभग एक व्यक्ति ने यह भी कहा है कि उन्हें परिवार या अन्य लोगों से कम बच्चे पैदा करने का दबाव महसूस होता है। इस बीच, यूएनएफपीए की भारत स्थित प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा, “भारत में मातृ मृत्यु दर में कमी आई है जिसका अर्थ है कि आज लाखों और मातायें जीवित हैं। बच्चों की परवरिश कर रही हैं और समुदायों का निर्माण कर रही हैं। फिर भी, राज्यों, जातियों और आय समूहों में गहरी असमानताएँ बनी हुई हैं।...////...
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