भारत -पाकिस्तान विभाजन के बाद बने शाहदरा के एक गुरुद्वारे की जमीन पर वक्फ का दावा खारिज
04-Jun-2025 09:57 PM 5618
नयी दिल्ली, 04 जून (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली वक्फ बोर्ड की ओर से राष्ट्रीय राजधानी में शाहदरा की एक संपत्ति (जहां गुरुद्वारा है) पर अधिकार जताने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने वक्फ बोर्ड की विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका में 2010 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड के संपत्ति पर दावे को खारिज कर दिया था। यह मामला 1980 के दशक का है, जब दिल्ली वक्फ बोर्ड ने हीरा सिंह (अब मृतक) के खिलाफ शाहदरा के एक गांव में कथित रूप से स्थित एक मस्जिद के कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया था। बोर्ड ने तर्क दिया कि संपत्ति वक्फ की संपत्ति थी, जो अनादि काल से धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित और उपयोग की जाती रही है। प्रतिवादी ने हालांकि दावे को विवादित बताते हुए तर्क दिया कि मुकदमा समय-सीमा पार कर चुका और दावा किया कि संपत्ति उसे मोहम्मद द्वारा बेची गई थी। एहसान नामक व्यक्ति ने 1953 में यह मामला दर्ज कराया था। उन्होंने आगे दावा किया कि स्वतंत्रता से पहले से ही यह परिसर गुरुद्वारा समिति के प्रबंधन के तहत एक गुरुद्वारे के रूप में कार्य कर रहा था। निचली अदालत ने वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया और इस फैसले को 1989 में प्रथम अपीलीय अदालत ने भी बरकरार रखा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने हालांकि 2010 में निचली अदालत के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया कि बोर्ड यह साबित करने में विफल रहा कि संपत्ति वक्फ थी। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, “न तो विवादित संपत्ति का वक्फ संपत्ति के रूप में अनादि काल से स्थायी समर्पण/उपयोग साबित हुआ है और न ही दस्तावेजी सबूत उसकी मदद करते हैं...प्रतिवादी ने स्वीकार किया कि वह 1947-48 से इस संपत्ति पर कब्जा कर रखा था।” फैसले से नाखुश बोर्ड ने 2012 में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत में बुधवार को बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने तर्क दिया, “निचली अदालतों ने माना है कि वहां एक मस्जिद थी। अब, वहां किसी तरह का गुरुद्वारा है।” पीठ ओर से न्यायमूर्ति शर्मा ने दृढ़ता से जवाब दिया, “...एक ठीक से काम करने वाला गुरुद्वारा है। एक बार गुरुद्वारा बन गया, तो उसे रहने दो। वहां पहले से ही एक धार्मिक संरचना काम कर रही है। आपको खुद ही उस दावे को छोड़ देना चाहिए।” न्यायमूर्ति शर्मा ने पीठ के अपने साथी सदस्य न्यायमूर्ति करोल को संबोधित करते हुए टिप्पणी की, “अरे, आज़ादी के पहले का गुरुद्वारा है...।” इसके बाद अदालत ने याचिका को सरसरी तौर पर खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, “क्षमा करें, क्षमा करें... खारिज।” इसके साथ ही शीर्ष न्यायालय ने दशकों पुराने मुकदमे का निपटारा कर दिया। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की और उस स्थल पर वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया।...////...
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