08-Sep-2023 02:44 PM
7808
जौनपुर , 08 सितम्बर (संवाददाता) राजनीति के पुरोधा व जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे जनसंघ व भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अपनी बुद्धिमत्ता व कौशल के दम पर उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में ऐसी छाप छोड़ी की देहांत के दो दशक बाद आज भी लोगों के बीच उनकी यादें ताजा हैं।
स्व़ राजा यादवेंद्र जौनपुर रियासत के 11वें राजा थे । उनका 09 सितंबर 1999 में देहांत हो गया था लेकिन लोगों के बीच आज भी उनकी यादें ताजा हैं। वह राजनीति के ऐसे धुरंधर थे जो अपनी बुद्धिमता से शीर्ष पर पहुंचे। हिंदी,अंग्रेजी और संस्कृत में धारा प्रवाह बात करने वाले स्व़ यादवेंद्र विज्ञान और ज्योतिष की भी अच्छी जानकारी रखते थे। वह उत्तर प्रदेश के आरएसएस के प्रभारी रहे। चार बार विधायक व दो बार सांसद चुने गए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में नेता विरोधी दल भी रहे। उनकी राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं कि उनके सामने अटल बिहारी वाजपेयी सम्मान में बैठते तक नहीं थे। पं.दीनदयाल उपाध्याय ने 1963 का उपचुनाव उनकी हवेली में एक माह रूककर लड़ा था। इनका संबंध आरएसएस के बड़े प्रचारकों से रहा, जिनका अक्सर यहां आना-जाना लगा रहता था।
उनके करीबी रहे राज पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य डा.अखिलेश्वर शुक्ला ने बताया कि एक बार लोकसभा में राजा साहब अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बोल रहे थे, उनकी वाकपटुता को पूरा सदन एकाग्रता से सुन रहा था। उनका समय समाप्त होने पर लोकसभा अध्यक्ष ने उनको रोकना शुरू किया। इस पर अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवानी ने अपना समय लोकसभा अध्यक्ष से आग्रह करके दिला दिया। उसी समय कांग्रेस नेता स्टीफेन ने टोका-टाकी शुरू कर दी तो राजा साहब ने उनको भोजपुरी भाषा में समझाते हुए कहा कि तोहार उमर चालीस होई आई, अवै न गई तोहार लरिकाई। इस पर पूरे सदन में ठहाका लगना व ताली बजना शुरू हो गया।वर्ष 1962 में सदर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे, तो राज हवेली से कलेक्ट्रेट तक जुलूस निकला था, जिसको बीबीसी ने कवर किया था। बीबीसी में बोला गया कि जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त के जुलूस में पूरे जिले की भीड़ इकट्ठा हो गई थी कि इसमें तिल रखने की जगह नहीं थी।
उनका जन्म सात दिसंबर 1918 को हुआ था। 1957 में पहली बार जनसंघ के टिकट पर जौनपुर सदर विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। दोबारा सदर सीट से 1962 के चुनाव में उनके सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता हरगोविद सिंह थे। उन्होंने उनको हराया तो उनको विधानसभा में नेता विरोधी दल बनाया गया। उनकी बढ़ती ख्याति व जीत को देखते हुए जनसंघ के बड़े नेता पं.दीनदयाल उपाध्याय को 1963 के उपचुनाव में यहां लड़ने के लिए भेजा गया था, जिसमें उनको हार मिली थी। वर्ष 1967 में बरसठी से चुनाव लड़कर विधायक चुने गए तो गड़वारा से भी एक बार चुनाव जीते। 1977 के इमरजेंसी में उन्हें वाराणसी के जेल में बंद किया गया था। वह जौनपुर लोकसभा से 1977 व 1989 में सांसद चुनकर संसद पहुंचे।
जौनपुर की राज हवेली में आरएसएस के दूसरे सरसंघ चालक गुरुजी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, आरएसएस नेता भाऊराव देवरस, वेणु गोपालन, नानाजी देशमुख, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जैसे दिग्गजों का आना-जाना लगा रहता था।...////...