बिहार के मिथिलेश की पुस्तक ‘अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ’ को मिली वैश्विक पहचान
06-May-2025 09:41 PM 8823
पटना, 06 मई (संवाददाता) बिहार के प्रबुद्ध लेखक और चिंतक मिथिलेश कुमार सिंह लिखित पुस्तक ‘अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ’ ने भारत ही नहीं, वैश्विक बौद्धिक जगत में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। यह पुस्तक डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को इस्लाम और वामपंथी सोच के साथ संवादात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है और इन तीनों विषयों के अंतर्संबंधों पर गहन विश्लेषण करती है। ऐतिहासिक संदर्भों, सामाजिक न्याय के विमर्श और समकालीन राजनीति को जोड़ते हुए लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि अंबेडकर का दृष्टिकोण इस्लाम और वामपंथ दोनों के प्रति आलोचनात्मक था। इस पुस्तक को देश के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण संस्थान लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी के पुस्तकालय में शामिल किया गया है। इसके अलावा आईसीएचआर, एआईसीटीई और गोवा केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने भी इसे अपने संग्रह में स्थान दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस पुस्तक की सराहना हो रही है। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, चैपल हिल जैसे विश्वप्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों की लाइब्रेरीज में यह पुस्तक शामिल की गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह कृति न केवल भारतीय समाज के जटिल मुद्दों पर केंद्रित है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी शोध और विमर्श के लिए प्रासंगिक है। लेखक मिथिलेश कुमार सिंह ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर कहा, “यह सम्मान न केवल उनका व्यक्तिगत गौरव है बल्कि भारत की सामाजिक चेतना और वैचारिक समृद्धि की भी स्वीकृति है। वर्तमान में गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय में सहायक कुलसचिव के पद पर कार्यरत श्री सिंह का मानना है कि जाति, धर्म और वर्ग आधारित संरचनाओं को समझने और उनके बीच संवाद की संभावनाओं को तलाशना आज के समय की आवश्यकता है और यही उनकी पुस्तक का उद्देश्य भी है। इस पुस्तक की वैश्विक स्वीकृति इस बात का संकेत है कि भारत के सामाजिक प्रश्न अब केवल स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं हैं बल्कि वे अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक विमर्श का भी हिस्सा बन चुके हैं।” उल्लेखनीय है कि यह उपलब्धि बिहार और पूरे हिंदी भाषी क्षेत्र के लिए गर्व की बात है क्योंकि यह दिखाता है कि इस क्षेत्र की लेखनी भी वैश्विक मंच पर न केवल सराही जा सकती है बल्कि गंभीर विमर्श का हिस्सा भी बन सकती है। 'अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ' अब एक ऐसा बौद्धिक दस्तावेज बन चुकी है, जो आने वाले समय में शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों और नीति निर्माताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी।...////...
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