23-Aug-2023 08:20 PM
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चेन्नई, 23 अगस्त (संवाददाता) भारतीय चंद्र मिशन ‘ चंद्रयान-3’ ने ‘चांदा मामा’ के उस ‘गहरे अंधेरे’, सर्वाधिक ठंडे और दुर्गम छोर ‘दक्षिणी ध्रुव’ को साहसिक कदमों से चूमा है जहां आज तक कोई भी देश नहीं पहुंच पाया है। भारत के वैज्ञानिकों ने बुधवार को चंद्रमा की दुनिया में अभूतपूर्व इतिहास रचा दिया।
भारत के लिए 23 अगस्त, 2023 की शाम छह बजकर चार मिनट ऐतिहासिक उपलब्धि के साथ गौरवपूर्ण क्षण है।चंद्रयान-3 आज वहां पहुंच गया जहां इससे पहले कोई भी देश नहीं पहुंच पाया था। चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान चंद्रमा के भूमध्य रेखा के पास के क्षेत्र पर उतर चुके हैं क्योंकि यह आसान और सुरक्षित है। इस इलाके का तापमान उपकरणों के लंबे समय तक और निरंतर संचालन के लिए अधिक अनुकूल है। वहां सूर्य का प्रकाश भी है जिससे सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों को नियमित रूप से ऊर्जा मिलती है।
चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र की स्थिति बिल्कुल अलग है यानी मुश्किलों से भरा है। कई हिस्से सूरज की रोशनी के बिना पूरी तरह से अंधेरे में ढ़के हैं और वहां का तापमान 230 डिग्री सेल्सियस से नीचे गिर सकता है। ऐसे तामपान में यंत्रों के संचालन में कठिनाइयां पैदा होती हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में हर जगह बड़े-बड़े गड्ढे हैं। यही कारण है कि आज तक कोई भी देश ऐसा साहसिक करनामा नहीं कर पाया। चंद्रमा का दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र अज्ञात रह गया था और भारत चंद्रमा के इस क्षेत्र पर उतरने वाला पहला देश बन गया।
अत्यधिक ठंडे तापमान का मतलब है कि और यहां कुछ भी फंस गया तो बिना अधिक परिवर्तन के समय के साथ स्थिर बना रहेगा। चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों में चट्टानें और मिट्टी हो सकती हैं और इनसे प्रारंभिक सौर मंडल के बारे में सुराग मिल सकता है।
इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा के बारे में हमारी समझ को बढ़ाना है। चांद की इस सतह पर लैंडर बिक्रम और रोवर प्रज्ञान ऐसी खोज कर सकते हैं जिनसे भारत और मानवता को लाभ होगा।
भारत ने आज एक ऐसी सफलता हासिल की है जिसके माध्यम से अमेरिका समेत विश्व के कई बड़े देशों को चंद्रयान-3 से चंद्र अभियानों को और आगे बढ़ाने का फायदा मिलेगा।...////...