मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि जहां-जहां भगवान श्रीकृष्ण के चरण पड़े हैं, वह हमारे लिए वंदनीय हैं। हमारी सरकार श्रीकृष्ण की चिरस्मृतियों से जुड़े सभी स्थानों एवं लीलास्थलों को तीर्थ के रूप में विकसित कर रही है। उन्होंने कहा कि राम वनगमन पथ की तरह हम श्रीकृष्ण पाथेय के विकास के लिए काम कर रहे हैं। इसके अंतर्गत उज्जैन के सांदीपनि आश्रम, धार के जानापाव और अमझेरा को तीर्थ बनाया जाएगा। ये सभी स्थान गोकुल जितने ही पवित्र हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके तत्कालीन समय में प्रजातंत्र की स्थापना की। माखन से गोपाल कृष्ण और बलराम का विशेष लगाव था। गोकुल से यह माखन मथुरा न पहुंच पाए, इसलिए श्रीकृष्ण ने बाल्यकाल में ही अपने साथियों की टीम बनाई और गोकुल ले जाई जा रही माखन की मटकियों को फोड़ना प्रारंभ कर दिया। यह एक प्रकार से तत्कालीन अतिवादी ताकतों के खिलाफ खुले विद्रोह के समान था। योगीराज श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में विभिन्न लीलाओं के जरिए समाज के समक्ष जीवन का कर्मवादी ध्येय प्रस्तुत किया।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव शनिवार को मुख्यमंत्री निवास में आयोजित श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर्व, हलधर महोत्सव और लीलाधर प्रकटोत्सव समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने जन्माष्टमी के भव्य समारोह में इस्कॉन मंदिर के पुजारी के मंत्रोच्चार के बीच बालगोपाल कृष्ण स्वरूप का जलाभिषेक, पूजा-अर्चना एवं दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस्कॉन इंटरनेशनल संस्था की ओर से कार्यक्रम में शामिल हुए धर्मप्रेमी बंधुओं को भगवान श्रीकृष्ण (लड्डू गोपाल) की प्रतिमा, कृष्ण साहित्य एवं प्रसादी का वितरण किया गया।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने कौरव- पांडवों के बीच हुए भीषण युद्ध महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और सदैव धर्म की रक्षा के लिए पांडवों के साथ खड़े रहे। श्रीकृष्ण ने द्वारकापुरी छोड़ते समय अपने पुत्र को सिंहासन पर नहीं बिठाया। वे अपने सिर पर सदैव मोरमुकुट धारण करते थे। इस प्रकार से योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपनी ग्रामीण सांस्कृतिक विरासत को हमेशा अपने सर माथे से लगाए रखा।