जीतनराम मांझी ने बंधुआ मजदूर से केन्द्रीय मंत्री बनने का सफर किया तय
09-Jun-2024 09:34 PM 8931
पटना, 09 जून (संवाददाता) सात वर्ष की उम्र में जमींदार के घर बंधुआ मजदूर के रूप में पहली नौकरी की शुरूआत करने वाले जीतन राम मांझी ने अपने बुलंद हौसलों और काम के प्रति समर्पण की भावना से राजनीति के क्षेत्र में विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और अब केन्द्रीय मंत्री बनने का स्वर्णिम सफर तय किया। जीतन राम मांझी का जन्म 06 अक्तूबर 1944 को गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के महकार गांव में हुआ। उनके पिता रामजीत राम मांझी खेतिहर मजदूर थे। मांझी बचपन में मां सुकरी देवी और पिता रामजीत मांझी के साथ गांव के ही एक जमींदार के घर में चाकरी करते थे। जीतनराम मांझी जब सात वर्ष के हुये तो जमींदार के घर बंधुआ मजदूरी करने लगे। जीतनराम मांझी जब 11 साल के हो गए,तो उनके पिता को अपने बच्चे को पढ़ाने-लिखाने की चिंता हुई, लेकिन मांझी के पिता के मालिक इसके सख्त खिलाफ थे।मांझी के पिता ने मालिक को सुझाव दिया कि वह चाहते हैं कि उनका बेटा पढ़ाई करे। यदि वह स्कूल जा सके तो उसकी स्थिति में सुधार होगा मालिक ने कहा,पढ़ा के अपन बेटवा के का कलेक्टर बनैएभीं। पढ़ावे के का जरूरत है। लेकिन जीतन के पिता जी के दिमाग में ये बात थी कि बेटा को पढ़ाना है।एक बार, जब जमींदार के बेटे ने होमवर्क पूरा नहीं किया तो शिक्षक क्रोधित हो गए लेकिन मांझी ने सौंपे गए कार्य और उत्तर को दोहराया।पढ़ाई में रुचि देखकर उन्हें जमींदार के बच्चों ने फूटी स्लैट दे दी, जिससे वह लिख पढ़ सकें।मांझी स्लेट के टूटे हिस्से पर पहाड़े लिखकर याद करते थे। मांझी के मन में पढ़ने की ललक थी और अपने पिता तथा जमींदार के बच्चों को पढ़ाने वाले एक शिक्षक से प्रोत्साहन मिलने पर उन्होंने बिना स्कूल जाए सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त कर ली। वर्ष 1962 में उच्च विद्यालय में शिक्षा पूरी करने के बाद श्री मांझी ने वर्ष 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की।वह अपना खर्च चलाने के लिए अपनी ही क्लास की लड़कियों को ट्यूशन दिया करते थे।लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाकर उस जमाने में मांझी 75 रुपये महीना कमाने लगे थे। वर्ष 1980 में जीतन राम मांझी ने इंदिरा कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया और आंदोलन का हिस्सा बन गए वह 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे' के नारे बुलंद करने लगे।वर्ष 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में फतेहपुर सुरक्षित सीट से मांझी ने जीत दर्ज कर ली। इसके बाद मांझी का राजनीतिक सफरनामा लगातार बढ़ता चला गया। श्री मांझी 1983 में बिहार में चंद्रशेखर सिंह सरकार में राज्य मंत्री बने।इसके बाद श्री मांझी 1985 में फिर विधायक बनें।इसी दौरान एक बार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1991 में श्री मांझी ने पहली बार गया (सु) से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में भी जीतन राम मांझी फतेहपुर सीट से चुनाव हार गये। जीतनराम मांझी ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ जनता दल से नाता जोड़ लिया।धीरे-धीरे लालू से उनकी नजदीकी बढ़ने लगी।वर्ष1996 के उपचुनाव में बाराचट्टी विधानसभा सीट से जीतन राम मांझी चुनाव जीत गये।वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में भी मांझी राजद के टिकट पर बोधगया (सु) के विधायक बनें।वर्ष 2005 अक्टूबर में मांझी राजद के टिकट पर बाराचट्टी के विधायक बनें।वर्ष 2005 में राजग की सरकार में मांझी को मंत्री बनाया गया। लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) कार्यकाल में एक भ्रष्टाचार के मामले की वजह से उनको इस्तीफा देना पड़ा।वर्ष 2008 में नीतीश कुमार ने श्री मांझी को फिर मंत्री बनाया। वर्ष 2010 के विधान सभा चुनाव में जीतनराम मांझी जहानाबाद के मखदूमपुर सीट से जदयू के टिकट पर लड़े और विजयी हुये।वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में श्री मांझी ने गया (सु) जदयू के टिकट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 आम चुनाव में जदयू की करारी हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।नीतीश कुमार अपने महादलित जनाधार को मजबूत करना चाहते थे, इसलिए महादलित समुदाय से एक नेता की तलाश थी, उनकी तलाश जीतन राम मांझी पर आकर खत्म हुई। जीतनराम मांझी मई 2014 से फरवरी 2015 तक नौ महीने बिहार के मुख्यमंत्री रहे। जनता दल यूनाईटेड (जदयू) ने बिहार के मुख्यमंत्री का पद छोड़ने और नीतीश कुमार के लिए रास्ता बनाने से इंकार करने वाले जीतन राम मांझी पर ‘‘अनुशासनहीनता’’ का आरोप लगाते हुए उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। श्री मांझी के विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की नौबत आई तो उन्होंने बहुमत नहीं देख 20 फरवरी 2015 को बिहार के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद, मांझी ने अपनी पार्टी, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा-सेक्युलर की स्थापना की और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग में शामिल हो गये। जीतन राम मांझी इमामगंज (सु) से जीत गये। वर्ष 2019 में जब लोकसभा चुनाव का वक्त आया तो जीतनराम मांझी राजग गठबंधन छोड़कर एक बार फिर से महागठबंधन में आ गए। इस लोकसभा चुनाव में हम तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन मांझी समेत तीनों ही कैंडिडेट चुनाव हार गए। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा उम्मीदवार जीतन राम मांझी भी हार गये। वर्ष 2020 विधानसभा चुनाव में जीतन राम मांझी फिर राजग में शामिल हुये और इमामगंज से विधायक बनें।वर्ष 2024 लोकसभा में मांझी राजग में ही शामिल रहे।बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान आवामी मोर्चा (हम) के संस्थापक और इमामगंज (सु) के विधायक जीतन राम मांझी गया (सु) सीट से चुनाव जीता है। उन्होंने राजद प्रत्याशी बोधगया (सु) के विधायक कुमार सर्वजीत को एक लाख 01 हजार 812 मतों के अंतर से पराजित किया है।जीतन राम मांझी ने अपने करीब पांच दशक के राजनीतिक सफर में विधायक,मंत्री से मुख्यमंत्री तक कई अहम पदों पर रहें लेकिन वह कभी लोकसभा सांसद नहीं बन सके थे।इस बार जीतन राम मांझी ने न सिर्फ बाजी अपने नाम कर ली और पहली बार संसद पहुंचने के साथ ही केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने।...////...
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