लोकतंत्र की कीमत समझने के लिए आपतकाल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जाना जरुरी:धनखड़
20-Jun-2025 09:32 PM 5590
नयी दिल्ली, 20 जुलाई (संवाददाता) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को यहां युवा अधिकारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्हें लोकतंत्र की कीमत समझने के लिए देश में 1975 के दशक में उस समय की सरकार द्वारा लागू किए गए आपात काल के बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ने और जानने का सुझाव दिया। श्री धनखड़ ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित करने के सरकार के पिछले वर्ष के निर्णय को एक उचित और महत्वपूर्ण बताते हुए कहा,“यह आपात काल की घटना के इस संभीर संदेश की याद दिलाने के लिए है कि हमें स्वयं लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षक और प्रहरी बनना होगा।” उन्होंने सातवें राज्य सभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह में युवा अधिकारियों से कहा,“मैं आप सभी से समय का सदुपयोग करने का आग्रह करता हूँ। एक होमवर्क मौलिक कर्तव्य था, दूसरा है कि कृपया आपातकाल के बारे में जितना हो सके सीखें, तब आपको लोकतंत्र की कीमत पता चलेगी।” उन्होंने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के 28वें वर्ष में 25 जून, 1975 की मध्यरात्रि थी, तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर देश में आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर किए। श्री धनखड़ ने कहा, “यह पहली बार था। अब, आप समझदार हैं, एक राष्ट्रपति किसी व्यक्ति,(अकेले) प्रधानमंत्री की सलाह पर काम नहीं कर सकता।” संविधान की उस व्यवस्था का भी उन्होंने उल्लेख किया कि राष्ट्रपति की सहायता और सलाह के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होती है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उस समय संविधान का उल्लंघन किए जाने का परिणाम यह हुआ कि उस दौरान देश में 100,000 से अधिक नागरिकों को कुछ ही घंटों में उनके घरों से घसीट कर सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। उन्होंने कहा,“हमारा संविधान खत्म हो गया, हमारे मीडिया को बंधक बना लिया गया। कुछ प्रतिष्ठित अखबार, जैसे इंडियन एक्सप्रेस, और भी हैं, स्टेट्समैन एक और अखबार है। उनके संपादकीय खाली थे..।” उन्होंने कहा कि उस समय जिन्हें अचानक सलाखों के पीछे डाल गया था उनमें से कई बाद में देश के प्रधानमंत्री बने (अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई और चंद्रशेखर ) और कई मुख्यमंत्री, राज्यपाल, वैज्ञानिक, प्रतिभाशाली लोग बने। उपराष्ट्रपति ने अधिकारियों से कहा, “उनमें से कई आपकी उम्र के थे।” उन्होंने कहा,“उस समय देश के नौ उच्च न्यायालयों ने शानदार ढंग से परिभाषित किया कि आपातकाल हो या न हो, लोगों के पास मौलिक अधिकार हैं। न्याय प्रणाली तक पहुंच है। दुर्भाग्य से, सुप्रीम कोर्ट ने सभी नौ उच्च न्यायालयों को पलट दिया और एक ऐसा फैसला दिया जो दुनिया में किसी भी न्यायिक संस्थान के इतिहास में सबसे काला फैसला होगा जो कानून के शासन में विश्वास करता है।” उपराष्ट्रपति ने कहा, “उच्चतम न्यायालयों की व्यवस्था के खिलाफ उच्चतम न्यालय का निर्णय यह था कि कार्यपालिका की इच्छा है कि वह आपातकाल को जितने समय के लिए उचित समझे, लागू करे। दूसरी बात यह कि आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होते, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने इस भारत भूमि, जो कि सबसे पुराना और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र है, में तानाशाही, निरंकुशता को वैध बना दिया। ” उन्होंने कहा, “इसलिए सरकार ने बहुत समझदारी से सोचा और 11 जुलाई, 2024 को एक अधिसूचना (25 जून को संविधान हत्या दिवस' घोषित करने की अधिसूचना) जारी की ...।” श्री धनखड़ ने युवा अधिकारियों को राज्य सभा की इंटरर्नशिप कर चुके अपने पुराने साथियों से संपर्क में रहने की सलाह दी । उन्होंने कहा कि इससे बड़ी शक्ति मिलेगी। उन्होंने कहा,“आपको बता सकता हूँ वह मंच जिसे आप तैयार करने की प्रक्रिया में हैं और महासचिव बहुत उत्सुकता से इस पर विचार कर रहे हैं। आपको उस मंच पर वह सब कुछ मिलेगा जिसकी युवा दिमाग को वैश्विक ज्ञान संसाधन, आपके अवसर और परामर्श के बारे में ज़रूरत है।” कार्यक्रम को राज्य सभा के महासचिव पीसी मोदी ने भी संबोधित किया।...////...
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