29-Jul-2023 08:47 PM
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शिलांग, 29 जुलाई (संवाददाता) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शनिवार को मेघालय विधानसभा में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र -तीन के 20वें वार्षिक सम्मेलन का यहां उद्घाटन किया।
मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा, राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश, मेघालय विधानसभा के अध्यक्ष थॉमस ए संगमा,अरुणाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष और सीपीए भारत क्षेत्र- तीन के अध्यक्ष पसांग डी सोना, संसद सदस्य, मेघालय विधान सभा के सदस्य और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
श्री बिरला ने सम्मेलन के आयोजन के लिए सीपीए भारत क्षेत्र- तीन और विशेष रूप से मेघालय विधानसभा को बधाई दी। उन्होंने उत्तर पूर्व क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए एक उपयोगी मंच उपलब्ध कराने के लिए अरुणाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष तथा सीपीए भारत क्षेत्र- तीन के अध्यक्ष पसांग डी. सोना का आभार व्यक्त किया।
श्री बिरला ने लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री पी ए संगमा का स्मरण करते हुए मेघालय के विकास और भारत के संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने में उनके योगदान की सराहना की।
पूर्वाेत्तर में बीते दिनों हुए घटनाओं का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा,“ ये घटनायें मानवता और सामाजिक व्यवस्था के स्तर पर हमारे लिए बहुत दुखद है। किसी के साथ हमारा व्यवहार उसको किसी भी तरह की पीड़ा पहुंचाने वाला न हो, उसकी मान-मर्यादा को ठेस पहुंचाने वाला न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए और एक व्यक्ति के रूप में, एक समाज के रूप यह हमारा नैतिक कर्तव्य है।” उन्होंने क्षेत्र में शांति की अपील की और कहा कि शांति ही विकास का आधार है ।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि सीपीए भारत क्षेत्र- तीन सभी चार जोनों में सबसे अधिक सक्रिय है, श्री बिरला ने हर्ष व्यक्त किया कि अब तक आयोजित किए गए 20 वार्षिक सम्मेलन संसदीय लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों के प्रति इस जोन की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। उत्तर पूर्व क्षेत्र की विधान सभाओं के बारे में श्री बिरला ने कहा कि इन सभाओं की बैठक में बिना व्यवधान के सार्थक और गंभीर चर्चाएं होती हैं। इस चर्चा और संवाद का सार्थक निष्कर्ष भी होता है जो इस क्षेत्र और देश के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।
श्री बिरला ने कहा कि ‘प्राकृतिक आपदाएँ और पूर्वाेत्तर क्षेत्र के विशेष संदर्भ में इन आपदाओं के प्रबंधन के लिए रणनीतियाँ’; और ‘पूर्वाेत्तर क्षेत्र को मुख्य भूमि भारत के बराबर लाने के लिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी’ जैसे विषय प्रासांगिक और समसामयिक हैं। उत्तर पूर्व में जैव विविधता हैं और यहाँ होने वाले किसी भी पारिस्थितिकीय असंतुलन का पूरे भारत की पर्यावरणीय स्थिति पर दूरगामी प्रभाव हो सकता हैं। इसलिए ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की बेहतर तैयारी करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बार पर जोर दिया कि आपदा से निपटने के लिए आवश्यक है कि ऐसी नीतियाँ तैयार की जाएं जिसमें पर्यावरण संबंधी नुकसान को रोका जा सके।
आपदा प्रबंधन के लिए नीति निर्माण के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री बिरला ने कहा,“ हमें प्रधानमंत्री के 10-सूत्रीय एजेंडा पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय क्षमताओं के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। भारतीय विकास मॉडल सस्टेनेबिलिटी पर आधारित है और समय के साथ, प्रौद्योगिकी के उपयोग और मानव संसाधनों के इष्टतम उपयोग के साथ, हमने आपदा तैयारी और प्रबंधन को मजबूत किया है।”
सम्मेलन में आये सभी प्रतिनिधियों का हार्दिक स्वागत करते हुए श्री संगमा ने कहा कि सीपीए समय के साथ विकसित हुआ है और साझा प्रतिबद्धता के साथ सभी सदस्यों को एक साथ लाने के लिए एक प्रभावी मंच साबित हुआ है।उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात, सूखा जैसी आपदाएँ विकास की गति में बाधा डालती हैं। गारो हिल्स में हाल में आई बाढ़ का उल्लेख करते हुए श्री संगमा ने बताया कि सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सेवकों द्वारा इसके प्रभाव को कम करने के लिए समय पर और सुसंगत दृष्टिकोण अपनाया गया था। उन्होंने कहा कि इन एजेंसियों के संयुक्त प्रयासों से बाढ़ के विनाशकारी प्रभाव को काफी हद तक नियंत्रित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उपलब्ध संसाधनों को बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचाने का एक सुव्यवस्थित तंत्र तैयार हुआ।...////...