14-Aug-2022 07:46 PM
7573
इटावा 14 अगस्त (AGENCY) ऊंटी बैंक को लूट कर अंग्रेजी हुकूमत को ललकारने का साहस दिखाने वाले चंबल के लाल शंभूनाथ आजाद ने मद्रास क्रांति की पटकथा लिख दी थी।
मात्र 17 साल की आयु में कचौरा घाट निवासी शंभूनाथ स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे। दिसम्बर 1930 में उन्हे और इंदर सिंह गढ़वाली को पिस्तौलों से भरे बैग के साथ गिरफ्तार किया गया था। दोनों को लाहौर जेल में तीन वर्ष का कारावास दिया गया। जेल में शम्भूनाथ ‘सिविल एंड मिलिट्री गजट’ पढ़ते थे। एक दिन इस अंग्रेजी दैनिक में मद्रास गवर्नर का भाषण छपा । इसमें कहा गया था कि मद्रास में न क्रांतिकारी गतिविधियां है और न उनके रहते पनप सकती है। यह पढ़ते है शम्भूनाथ आज़ाद का खून खौल उठा। उन्होंने संकल्प लिया कि जेल से छूटते ही मद्रास में ऐसा धमाका करेंगे कि इंग्लैंड तक दहल जाएगा ।
जेल से छूटते ही शंभूनाथ साथियों के साथ मद्रास पहुंचे। तय हुआ ऊटी बैंक डकैती के बाद मद्रास और बंगाल के गवर्नरों का खात्मा कर दिया जाएगा। 29 अप्रैल को गवर्नर का ग्रीष्मकालीन दरबार लगना था । इसमें मद्रास और बंगाल के गवर्नर के अलावा जनरल एंडरसन को सम्मिलित होना था। एंडरसन को आयरलैंड से विशेष रूप से भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने के लिये भेजा गया था।
चंबल फाउंडेशन के संस्थापक शाह आलम राना ने बताया कि 28 अप्रैल, 1933 को दोपहर 12 बजे शंभूनाथ ने अपने छह साथियों के साथ जान पर खेलकर 80 हजार रुपये ऊटी बैंक से लूट लिये। बैंक एक्शन में हिस्सा लेने वाले चार क्रांतिकारियों को दो दिन बाद ही पकड़ लिया गया। चारो तरफ से घिरता देख एक मई को पार्टी कार्यालय में विस्फोटक सामग्री से बम बना लिया गया। उसी शाम को रायपुरम समुद्र तट पर बम परीक्षण किया गया।
एक प्रलयकारी विस्फोट की आवाज और धुएं के बादलों ने चारों तरफ से शहर को ढक लिया। क्रांतिकारी जब मकान पर पहुंचे तो पता लगा कि रोशनलाल नहीं आए। बम फेंकते उनका एक हाथ उड़ गया और बुरी तरह झुलसी हालत में उनको पुलिस उठाकर जनरल अस्पताल ले आई। रोशनलाल को उस समय भी होश था पर उन्होंने जुबान नहीं खोली। अस्पताल पहुंचने के लभभग तीन घंटे बाद रोशनलाल शहीद हो गये।
चार मई, 1933 को पुलिस ने मद्रास शहर के पार्टी कार्यालय को घेर लिया। क्रांतिकारियों की 5 घंटे तक पुलिस से सशस्त्र मुठभेड़ हुई जिसमें गोविन्दराम बहल शहीद हुए। गोलियां खत्म होने के बाद तीनों क्रांतिकारी पकड़ लिए गए। क्रांतिकारियों की पैरवी एस सत्यमूर्ति एडवोकेट ने निःशुल्क की। ऊटी बैंक कांड में 25 साल तथा मद्रास सीटी बम केस में 20 साल के काले पानी की सजा शंभूनाथ आजाद को हुई। दोनों सजाएं साथ-साथ चलने की अपील भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दी।
क्रांतिकारियों अलग-अलग जेलों में खूब यंत्रणाए दी जाने लगी तो शंभूनाथ आजाद ने मद्रास सेंट्रल जेल में 6 महीने अनशन किया। फिरंगी सरकार ने 1934 में उन्हें नारकीय सेल्यूलर जेल भेज दिया। इस दौरान जेल में कई क्रांतिकारी या तो पागल या शहीद हो गए।
1937 में अंडमान में समस्त चार सौ राजबंदियों ने तीन महीने तक आमरण अनशन किया। इससे पूरे देश में माहौल बना। दबाव में अंडमान सेल्यूलर जेल से विभिन्न प्रांतो के क्रांतिकारियों को 1938 में वापस भेज दिया गया। 1938 में शंभूनाथ आजाद रिहा हुए। शंभूनाथ आजाद ने झांसी में क्रांतिकारी नौजवनों का छापामार दस्ता बनाकर आजादी की निर्णायक लड़ाई की तैयारी के लिए जुट गए। उनकी बम फैक्टरी पकड़ी गई। 1 सितंबर 1939 को द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होते ही शंभूनाथ आजाद गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट से बच भूमिगत होकर कार्य करते रहे और जल्द पकड़ में आ गए।
आजाद को साढ़े चार वर्ष की सजा हुई। 1942 की बरेली की नारकीय जेल के गड्ढा बैरक में बंद कर दिया गया। जहां 1943 में शंभूनाथ आजाद को भूख हड़ताल शुरू करने के एक सप्ताह बाद 20-20 बेंत की सजा देने के साथ ही कलम 59 के तहत सजा बढ़ा दी गई। भूख हड़ताल के दौरान शंभूनाथ आजाद के सभी दांत तोड़ दिये गए।
1946 में फतेहगढ़ सेंट्रल जेल से रिहा होने पर जेल गेट पर ही नजरबंद कर लिये गये। फिर केंद्र में अंतरिम सरकार बनने पर रिहा हुए। 12 अगस्त 1985 को अपने घर अंतिम सांस ली। देश की कई कुख्यात जेलों में कठिन जीवन के बीच इतिहास, राजनीति शास्त्र, दर्शन शास्त्र और अंग्रेजी का अध्ययन किया।...////...