26-May-2024 12:19 PM
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(प्रेम कुमार से)
पटना, 26 मई (संवाददाता) बिहार में इस बार के लोकसभा चुनाव में सातवें और अंतिम चरण में हॉट संसदीय सीटों में शुमार पाटलिपुत्र में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की पुत्री राज्यसभा सांसद मीसा भारती और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी।
बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र था। पवित्र गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसे इस शहर को लगभग 2000 वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। यह उन दिनों की बात है, जब मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र यानी प्राचीन पटना की शोहरत सात समंदर पार तक थी। दूर देशों के यात्री यहां आने को ललायित रहते। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज पाटलिपुत्र की समृद्धि और वैभव देख दंग रह गया था। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह लोगों का बनाया शहर है। कभी चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा था कि लकड़ी की नक्काशियों और कलाकृतियों से सज्जित यह शहर दुनिया के महानतम् शहरों में से एक था।
प्राचीन भारत के इतिहास में मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और इसके चक्रवर्ती सम्राट अशोक का विशिष्ट स्थान है। जहां पाटलिपुत्र की गिनती भारत के सबसे विशाल नगरों में होती है, वहीं इसके मौर्य वंशीय राजा अशोक न सिर्फ अपने देश बल्कि पूरे विश्व के महानतम राजाओं में एक माने जाते हैं। पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र बिहार का बेहद महत्वपूर्ण इलाका है। पाटलिपुत्र ऐतिहासिक दृष्टि से भारत के प्राचीनतम और समृद्धतम शहरों में से एक रहा था, जिसकी नींव 490 ईसा पूर्व में बिंबसार के पुत्र अजातशत्रु ने रखी थी। अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने अपनी राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दिया था। यहीं रहकर चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध का दूर-दूर तक विस्तार किया। इतिहासकारों की मानें तो वर्तमान का जो पटना है वह हजारों वर्ष पहले एक बड़ा गांव हुआ करता था। यहां पाटलि के काफी पेड़ थे। पाटलि पेड़ के पुष्प काफी सुगंधित होते थे और यहां अन्य सारे भी पुष्प खूब होते थे इसलिए इसका नाम पुष्पपुर और कुसुमपुर पड़ा। जब यह गांव से नगर के रूप में विकसित हुआ तो इसका नाम पाटलिपुत्र पड़ गया। लोक कथाओं के अनुसार, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है। उसने अपनी रानी पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण किया। इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा। पाटलिपुत्र नाम भी इसी के कारण पड़ा।
वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव में पाटलिपुत्र संसदीय सीट हुआ करती थी। पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर हुये पहले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सारंगधर सिंह ने सोशलिस्ट पार्टी के ज्ञानचंद को पराजित किया। श्री सिंह पटना विश्वविद्यालय (1949-52) के कुलपति थे। वह बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स (1949-51) के अध्यक्ष चुने गए। वह भारत की संविधान सभा के सदस्य थे, जिन्हें स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने की भारी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके अलावा,1950 में राष्ट्रमंडल, न्यूजीलैंड के विश्वविद्यालयों के संघ के सम्मेलन में भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद पाटलिपुत्र सीट विलोपित हो गया और वर्ष 1957 में पटना लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। वर्ष 2008 तक पटना में सिर्फ एक लोकसभा सीट हुआ करती थी लेकिन परिसीमन के बाद यहां दो सीटें हो गईं। एक पाटलिपुत्र (शहर के प्राचीन नाम पर आधारित) और दूसरी सीट पटना साहिब।
बिहार की प्राचीन राजधानी पाटलिपुत्र अपने उदय के समय से ही सियासी लड़ाई का केन्द्र रही है। पटना के पुराने नाम से मशहूर पाटलिपुत्र में कई राजवंशों के बीच सियासी लड़ाइयां हुईं और पाटलिपुत्र कई राजनीतिक बदलाव का गवाह बना रहा।
वर्ष 2009 में पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर पहली बार चुनाव हुए। पाटलिपुत्र के पहले चुनावी अखाड़े में एक ओर जहां राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव थे, वहीं दूसरी ओर श्री यादव के पुराने साथी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता रंजन प्रसाद यादव। पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर हुए पहले मुकाबले में ही बड़ा उलटफेर हो गया और जदयू के रंजन प्रसाद यादव ने लालू प्रसाद को पटखनी देकर सबको हैरान कर दिया। रंजन प्रसाद यादव ने लालू प्रसाद यादव को करीब 23 हजार से ज्यादा वोटों से हराया और उनके राजनीतिक कद पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया।
वर्ष 2014 के आम चुनाव में पाटलिपुत्र सीट पर अपनों के बीच सियासी घमासान देखने को मिला। इस चुनाव से पहले पाटलिपुत्र सीट पर रामकृपाल यादव का नाम राजद की ओर से तय माना जा रहा था, लेकिन ऐन वक्त पर लालू प्रसाद यादव ने राम कृपाल यादव को टिकट न देकर अपनी बेटी मीसा भारती को टिकट दे दिया। रामकृपाल यादव, लालू प्रसाद यादव के इस फैसले से नाराज हुए। उन्होंने इस फैसले के विरोध किया और बागी तेवर अपनाया। भाजपा ने मौके का फायदा उठाया श्री राम कृपाल यादव को टिकट दे दिया। मीडिया में इस लड़ाई को चाचा-भतीजी की लड़ाई बताया गया, जिसमें चाचा राम कृपाल ने पहली बार भतीजी मीसा भाारती को शिकस्त दी। चुनाव से पहले ऐसा माना जा रहा था कि राम कृपाल यादव भाजपा में जाकर और पाटलिपुत्र से लालू यादव की बेटी के खिलाफ चुनाव लड़कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, लेकिन उन्होंने मीसा भारती को हराकर सबको चौंका दिया।
कभी लालू प्रसाद यादव के ‘हनुमान’ माने जाने वाले राम कृपाल यादव ने श्रीमती मीसा भारती को 40 हजार 322 मतो के अंतर से पराजित किया था। जदयू प्रत्याशी रंजन प्रसाद यादव तीसरे नंबर पर रहे। रामकृपाल यादव का वर्ष 2014 में बगावत कर भाजपा में शामिल होना किसी वरदान से कम नहीं रहा और नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में भी उन्हें जगह मिल गयी। इससे पूर्व श्री राम कृपाल यादव ने वर्ष 1993, 1996, 2004 मे पटना संसदीय सीट से जीत हासिल की थी। वर्ष 2019 में भी पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर पूर्व भाजपा प्रत्याशी रामकृपाल यादव ने बाजी मारी। भाजपा प्रत्याशी रामकृपाल यादव ने राजद प्रत्याशी मीसा भारती को दूसरी बार 39 हजार 321 मतों के अंतर से पराजित कर दिया।
लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें चरण में एक जून को वोट डाले जाएंगे। इसी चरण में बिहार की सबसे हॉट सीटों में से एक पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर भी मतदान होना है। यहां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक भाजपा और इंडिया गठबंधन के घटक राजद के प्रत्याशी के बीच सीधी टक्कर है। पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में राम कृपाल यादव और मीसा भारती सियासी अखाड़े में एक-दूसरे के सामने हैं। पाटलिपुत्र सीट का चुनाव एक सीट भर की बात नहीं है बल्कि इसे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की प्रतिष्ठा से जोड़कर भी देखा जा रहा है। रामकृपाल यादव जहां भाजपा के टिकट पर इस बार जीत की हैट्रिक पूरी करने के इरादे से उतरेंगे, वहीं राजद प्रत्याशी मीसा भारती की कोशिश हार की हैट्रिक से बचने की होगी।
भाजपा और राजद दोनो दलों के प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। मीसा भारती ,लालू यादव के मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण के बल पर चुनाव में जीत हासिल करना चाहती हैं। वहीं, भाजपा प्रत्याशी रामकृपाल यादव विकास और मोदी के नाम के बल पर चुनाव लड़ रहे हैं।इस सीट पर मीसा भारती के सामने अपने पिता लालू प्रसाद यादव की प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है, तो वहीं भाजपा प्रत्याशी राम कृपाल यादव के सामने इस क्षेत्र से तीसरी बार जीत दर्ज करने की चुनौती है। पाटलिपुत्र में रामकृपाल यादव और मीसा भारती में सीधी लड़ाई है।रामकृपाल यादव अपने वोटरों के बीच रहते हैं।वोटरों से उनका सीधा कनेक्ट है।पार्टी से इतर अपनी छवि के दम पर रामकृपाल जीतते रहे हैं और थोड़ी-थोड़ी वजहों से मीसा भारती जैसी मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि की उम्मीदवार हार जाती हैं।इसके अलावा रामकृपाल यादव को जीत के लिए मोदी फैक्टर से भी आस है, पिछले दिनों पटना में पीएम का रोड शो हो चुका है, जबकि 25 मई को पाटलिपुत्र के बिक्रम विधानसभा में भी उनकी रैली हुयी है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर कटाक्ष करते हुए कहा कि एलईडी बल्ब के युग में वह लालटेन के साथ चल रहा है, जो केवल एक विशेष घर को रोशन करने में सक्षम है। उसने 30 वर्षों तक केवल एक ही घर में रोशनी की जबकि अन्य घरों को अंधेरे में रहने को मजबूर किया। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने केवल अपने परिवार के सदस्यों का विकास किया और अन्य यादवों की प्रगति में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है।
दो चुनाव से हार का सामना कर रहीं मीसा भारती इस बार जीत को लेकर आश्वस्त नजर आती हैं, वहीं, राजनीतिक एक्सपर्ट भी मानते हैं कि इस बार मुकाबला टफ है। इस बार गठबंधन की वजह से वोट बिखरा नहीं है। ऐसे में मीसा भारती रामकृपाल यादव को चुनौती दे रही हैं।बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और राजद नेता राबड़ी देवी पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से अपनी बेटी राजद उम्मीदवार मीसा भारती के समर्थन में चुनाव अभियान किया है। राबड़ी देवी ने कहा है कि भाजपा नारा(400 पार का) लगा रही है तो लगाने दो। हमें नारा लगाने का हक है तो उन्हें भी है… पूरे देश में हलचल है, इंडिया गठबंधन की सरकार आ रही है।पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों, बेरोजगारी और महंगाई से आमजन परेशान है। 10 वर्षों के कार्यकाल में भाजपा ने गरीबों, शोषितों, वंचितों के हक और अधिकार के लिए कोई काम नहीं किया है। जिस कारण लोग मुद्दों के आधार पर परिवर्तन का मन बना चुके हैं।देश में परिवर्तन की बयार चल रही है और इस बार पाटलिपुत्र की जनता ने भी परिवर्तन का मन बना लिया है। जिस तरह से लोगों का समर्थन और विश्वास इंडिया गठबंधन और राष्ट्रीय जनता दल को मिल रहा है, उससे भाजपा और एनडीए के खेमे में घबराहट और बेचैनी स्पष्ट रूप से देखी जा रही है।बेचैनी का परिणाम है कि पीएम मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री बिहार में घूम रहे हैं। बिहार के सीएम सहित सभी मंत्री, भाजपा और एनडीए के नेता चुनाव-प्रचार में लगे हैं। इसके बावजूद तेजस्वी यादव का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं।
भाजपा सांसद रामकृपाल यादव ने कहा कि सड़क को छोड़कर आसमान में उड़ने वाले धाराशाही हो जाएंगे। जब तक जिंदा हूं, पाटलिपुत्र की जनता की सेवा करता रहूंगा। हमेशा सुख दुख में शामिल रहा हूं, आगे भी रहूंगा। रामकृपाल यादव ने आरोप लगाया कि मीसा भारती को निर्वाचन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के बारे में भी जानकारी नहीं है। रामकृपाल यादव ने खुद को घर-घर का बेटा बताया है। उन्होंने दावा किया कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार के संयुक्त काम से पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विकास की धारा बिना रुके बह रही है।राजद एक परिवार की पार्टी है।राजद के पास मीसा के लिए प्रचार करने के लिए नेताओं की कमी है।
वहीं राजद प्रत्याशी मीसा भारती ने कहा कि उनके चुनाव प्रचार की तैयारी कार्यकर्ता कर रहे हैं।मीसा इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं। इस बार मतदाताओं के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों के रूप में आसमान छूती महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा अहम है।बड़े-बड़े वादे कर चुनाव जीता गया था। बिहार के युवाओं, किसानों एवं छात्रों को ठगा गया हैं। इनलोगों ने चार सौ पार का नारा इसलिए दिया है, जिससे संविधान को बदला जा सके। जनता को पता है कि बिहार में नौकरी किसने दी। रोजगार देने का काम तेजस्वी यादव ने किया है।मीसा भारती इस बार महंगाई, बेरोजगारी, पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में विकास कार्यों की अनदेखी, नीतीश कुमार की ओर से बार-बार पाला बदलना और भाजपा की ओर से युवाओं के समस्याओं को न सुलझाने के मुद्दे जोर-शोर से उठा रही हैं। उन्होंने दावा किया है कि पाटलिपुत्र में भी इस बार राजद की जीत होगी. ‘बार बार काठ की हांडी नहीं चढ़ती’, यही पाटलिपुत्र में होगा और भाजपा के रामकृपाल यादव की हार होनी तय है।उन्होंने कहा कि दस साल से भाजपा के सांसद पाटलिपुत्र से हैं. लेकिन, यहाँ उन्होंने क्या काम किया है उन्हें बताना चाहिए। पूर्व सांसद रंजन प्रसाद यादव हाल ही में जदयू छोड़ राजद के खेमे मे आये हैं। इसका फायदा राजद की मीसा भारती को मिल सकता है।
लालू यादव की छोटी बेटी रोहिणी आचार्य अपनी बहन मीसा भारती के चुनाव प्रचार में उतर गई हैं। रोहिणी ने पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के कई इलाकों में जनसंपर्क किया और लोगों से मीसा भारती के पक्ष में वोट करने की अपील की।
राजद प्रत्याशी मीसा भारती इस सीट पर जीत के लिए अपने सामाजिक समीकरण पर निर्भर है। यहां सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं।उसके बाद सवर्ण वोटर आते हैं, जिसमें भूमिहार मतदाता, वैश्य, राजपूत आदि हैं।मुस्लिम और दलित मतदाता भी यहां अच्छी संख्या मे हैं। यहां दोनों खेमों से यादव प्रत्याशी होने से मामला और दिलचस्प हो गया है। राजग को जदयू के साथ होने से कुर्मी- कुशवाहा मतदाताओं का समर्थन मिलने की उम्मीद है। रामकृपाल यादव अपने व्यक्तिगत जुड़ाव के कारण यादव वोटों में सेंध लगाने में सफल दिखते हैं, वहीं अगड़ी जातियों और नीतीश कुमार के समर्थक माने जाने वाले कोइरी और कुर्मी वोटों का बड़ा हिस्सा भी उनके साथ जुड़ता है। लोगों का मानना है कि रामकृपाल की हर समाज में पैठ है. उनके लिहाज से सामाजिक समीकरण भी फिट बैठते हैं और यही उनकी जीत की बड़ी वजह बनते आ रहे हैं।
राजनीतिक मतभेदों के बीच मीसा भारती रामकृपाल यादव को अपना चाचा मानती हैं और रामकृपाल यादव भी मीसा को अपनी भतीजी बताते हैं। इस बार पाटलिपुत्र में मीसा भारती और उनके चाचा लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में है। अब इस चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रधानमंत्री के रैली के बाद बीजेपी अपने प्रत्याशी पाटलिपुत्र में हैट्रिक जमाएंगे या फिर उनकी भतीजी बड़ा उलटफेर करने में कामयाब होगी।
इस बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर अपने उम्मीदवार फारुक राजा उर्फ़ डब्लू के प्रचार के लिये पटना आये हैं।फारुक राजा उर्फ़ डब्लू पहले राष्ट्रीय जनता दल में थे। वह हाल ही में राजद छोड़ असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम में शामिल हुए हैं।
पाटलिपुत्रा लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं। इनमें दानापुर, मनेर, मसौढ़ी, फुलवारीशरीफ, पालीगंज और विक्रम शामिल है। पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का अलग मिजाज है। यहां विधानसभा और लोकसभा चुनावों में वोटरों का रुख बदल जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजग गठबंधन यहां एक भी सीट नहीं जीत पाई, सारी सीटें महागठबंधन के खाते में गयी थी। दानापुर, मनेर और मसौढ़ी सीट पर राजद का कब्जा है।फुलवारी और पालीगंज सीट पर भाकपा माले जबकि बिक्रम सीट कांग्रेस के खाते में गई। हालांकि हाल ही में बिक्रम के कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ सौरभ पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो गए हैं।
परिसीमन के बाद पाटलिपुत्र में अबतक तीन बार चुनाव हुये और तीनों बार राजग ने यहां जीत हासिल की है। वर्ष 2009 में जदयू के रंजन प्रसाद यादव विजयी बनें वहीं दो बार 2014 और 2019 में भाजपा के राम कृपाल यादव सांसद बने। पाटलिपुत्र संसदीय सीट से भाजपा, राजद,बहुजन समाज पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस ए इतेहादुल मुसलमिन समेत 22 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। देखना दिलचस्प होगा कि इस सियासी घमासान में पिछले दो चुनावों में चूक रहीं मीसा भारती हार की हैट्रिक रोक पाएंगी या फिर रामकृपाल यादव जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब होंगे।...////...