समाज के हर संवेदनशील मसलों पर फिल्में बनाकर लोगों को जागरूक किया ऋषिकेष मुखर्जी ने
26-Aug-2023 12:31 PM 4155
..पुण्यतिथि 27 अगस्त के अवसर पर . मुंबई, 26 अगस्त (संवाददाता) बॉलीवुड में ऋषिकेष मुखर्जी को एसे फिल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने समाज के हर संवेदनशील मसलों पर फिल्म बनाई और लोगों को जागरूक करने की कोशिश की। ऋषिकेश मुखर्जी ने मानवीय पहलुओं पर फिल्म बनाने के साथ-साथ मनोरंजन के पक्ष को भी कभी अनदेखा नहीं किया। यही कारण है कि उनकी फिल्में आज भी लोगों में लोकप्रिय है। ऋषिकेष का जन्म 30 सितंबर 1922 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद कुछ दिनो तक उन्होंने गणित और विज्ञान के अध्यापक के रूप में भी काम किया। चालीस के दशक में ऋषिकेश ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत न्यू थियेटर में बतौर कैमरामैन से की। न्यू थियेटर में उनकी मुलाकात जाने माने फिल्म संपादक सुबोध मित्र से हुयी। उनके साथ रहकर ऋषिकेष ने फिल्म संपादन का काम सीखा।इसके बाद ऋषिकेष फिल्मकार विमल राय के साथ सहायक के तौर पर काम करने लगे। ऋषिकेष ने विमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन और देवदास का संपादन भी किया। बतौर निर्देशक ऋषिकेष ने अपने कैरियर की शुरूआत वर्ष1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘मुसाफिर’ से की। दिलीप कुमार. सुचित्रा सेन और किशोर कुमार जैसे नामचीन सितारो के रहने के बावजूद फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुयी। वर्ष 1959 में ऋषिकेष मुखर्जी को राजकपूर को फिल्म .अनाड़ी. में निर्देशित करने का मौका मिला। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी और इसके साथ ही बतौर निर्देशक ऋषिकेष फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। वर्ष 1960 में ऋषिकेष की एक और फिल्म ‘अनुराधा’ प्रदर्शित हुयी। बलराज साहनी और लीला नायडू अभिनीत इस फिल्म की कहानी ऐसी शादी शुदा युवती पर आधारित है जिसका पति उसे छोड़कर अपने आदर्श के निर्वाह के लिये गांव चला जाता है। हालांकि यह फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुयी लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ही बर्लिन फिल्म फेस्टिबल में भी इसे सम्मानित किया गया।वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘आशीर्वाद’ ऋषिकेष मुखर्जी के कैरियर की सर्वाधिक सुपरहिट फिल्म साबित हुयी। इस फिल्म के जरिये ऋषिकेष ने न सिर्फ जातिगत प्रथा और जमीन्दारी प्रथा पर गहरी चोट की बल्कि एक पिता की व्यथा को भी रूपहले पर्दे पर साकार किया। इस फिल्म में अशोक कुमार पर फिल्माया यह गीत ..रेलगाड़ी रेलगाड़ी.. उन दिनो काफी लोकप्रिय हुआ था। वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म ‘सत्यकाम’ ऋषिकेष निर्देशित महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। धमेन्द्र और शर्मिला टैगोर की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म की कहानी एक ऐसे युवक पर आधारित है जिसने स्वतंत्रता के बाद जैसा सपना देश के बारें में सोचा था वह पूरा नही हो पाता है। हालांकि यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर असफल साबित हुयी लेकिन सिने प्रेमियों का मानना है कि यह फिल्म ऋषिकेष की उत्कृष्ट फिल्मों में एक है। जया भादुड़ी को प्रारंभिक सफलता दिलाने में निर्माता-निर्देशक ऋषिकेष की फिल्मों का बड़ा योगदान रहा। उन्हें पहला बड़ा ब्रेक उन्ही की फिल्म ‘गुड्डी’ (1971) से मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसी लड़की की भूमिका निभाई जो फिल्में देखने की काफी शौकीन है और अभिनेता धर्मेन्द्र से प्यार करती है। अपने इस किरदार को जया ने इतने चुलबुले तरीके से निभाया कि दर्शक उस भूमिका को आज भी भूल नही पाये हैं। फिल्म गुड्डी के बाद जया ऋषिकेष मुखर्जी की पसंदीदा अभिनेत्री बन गयी। ऋषिकेश जया को अपनी बेटी की तरह मानते थे और उन्होंने जया को लेकर बावर्ची, अभिमान, चुपके चुपके और मिली जैसी कई फिल्मों का निर्माण भी किया। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘आनंद’ ऋषिकेष निदेर्शित सुपरहिट फिल्म में शुमार की जाती है। फिल्म में राजेश खन्ना ने आनंद की टाइटिल भूमिका निभाई। फिल्म के एक दृश्य में राजेश का बोला गया यह संवाद ..बाबूमोशाय .हम सब रंगमंच की कठपुतलियां है जिसकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों से बंधी हुई है कौन कब किसकी डोर खिंच जाये ये कोई नही बता सकता... उन दिनों सिने दर्शको के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था और आज भी सिने दर्शक उसे नहीं भूल पाये हैं। वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘अभिमान’ ऋषिकेष निर्देशित महत्वपूर्ण फिल्म में शुमार की जाती है। अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में अमिताभ एक ऐसे अभिमानी पति की भूमिका में दिखाई दिये जो पत्नी को संगीत के क्षेत्र में बढ़ता देखकर अंदर ही अंदर जलने लगता है।वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘चुपके चुपके’ ऋषिकेष के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। इस दौर में अमिताभ और धमेन्द्र को लेकर फिल्मकार केवल मारधाड़ और एक्शन से भरपूर फिल्म का निर्माण किया करते थे लेकिन उन्होंने उन दोनो को लेकर हास्य से भरपूर फिल्म चुपके चुपके का निर्माण करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया। वर्ष 1979 में प्रदर्शित फिल्म ‘गोलमाल’ ऋषिकेष के सिने करियर की सुपरहिट फिल्म में शुमार की जाती है। जब कभी हास्य फिल्मों की चर्चा की जायेगी तब फिल्म गोलमाल का नाम अवश्य लिया जायेगा। अमोल पालेकर और उत्पल दत्त अभिनीत इस फिल्म के जरिये ऋषिकेष ने दर्शको को हंसते..हंसते लोटपोट कर दिया। वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म ‘नामुमकिन’ की टिकट खिड़की पर असफलता के बाद ऋषिकेष मुखर्जी को यह महसूस हुआ कि इंडस्ट्री में व्यावसायिकता कुछ ज्यादा ही हावी हो गयी है। इसके बाद उन्होंने लगभग 10 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 1998 में उन्होंने अनिल कपूर को लेकर फिल्म ‘झूठ बोले कौआ काटे’ का निर्माण किया लेकिन दुर्भाग्य से यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर विफल साबित हुयी। ऋषिकेष को अपने सिने कैरियर में सात बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन सबके साथ ही वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनुराधा’ के लिये ऋषिकेष बतौर फिल्म निर्माता राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये। फिल्म के क्षेत्र के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पदमविभूषण से भी सम्मानित किया गया। फिल्म इंडस्ट्री में ऋषिकेश मुखर्जी का अंदाज सबसे जुदा था। उन्होंने हर फिल्म में जीने की फिलॉसफी देने की कोशिश की। अपनी फिल्मों में हंसते-हंसाते जीवन के सच से भी वह रूबरू करा देते थे। कहा जाता है कि ऋषिकेश मुखर्जी फिल्मों की स्क्रिप्ट में डूब जाते थे और तब फिल्मों का निर्माण करते थे। यह उनकी सादगी का भी प्रतिनिधित्व करता था। गानों के फिल्मांकन में भी ऋषिकेश मुखर्जी बेजोड़ थे। उनकी फिल्मों के गाने भी लोगों को खूब पसंद आते थे। फिल्म इंडस्ट्री में ऋषिकेश मुखर्जी उन गिने चुने चंद फिल्मकारों में शामिल थे जो फिल्म की संख्या से अधिक उसकी गुणवत्ता पर यकीन रखते हैं इसलिये उन्होंनें अपने चार दशक के सिने कैरियर में 13 फिल्मों का निर्माण और 43 फिल्मों का निर्देशन किया। फिल्म निर्माण के अलावा उन्होंने कई फिल्मों का संपादन किया। उन्होंने कई फिल्मों की कहानी और स्क्रीन प्ले भी लिखा। अपनी फिल्मों से लगभग तीन दशक तक दर्शको का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान फिल्मकार ऋषिकेष दा 27 अगस्त 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।...////...
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