28-Jan-2022 09:43 PM
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नयी दिल्ली, 28 जनवरी (AGENCY) उच्चतम अदालत ने शुक्रवार को कहा कि संसद/विधानसभा असंवेदनशील स्थान बनते जा रहे है। ऐसी निराशाजनक स्थिति से निकलने के लिए उच्चतम स्तर की बौद्धिक बहस के गौरव एवं स्तर को बहाल करने की दिशा में सुधारात्मक कदम उठाया जाना समय की मांग है।
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने महाराष्ट्र विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों के 1 साल तक के निलंबन को असंवैधानिक बताने वाले अपने फैसले में यह टिप्पणियां कीं।
पीठ ने कहा,“विश्व नेता और आत्मनिर्भर / निर्भर बनने के लिए सदन में बहस की गुणवत्ता उच्चतम स्तर की होनी चाहिए। बहस देश / राज्यों के आम आदमी के सामने आने वाले आंतरिक संवैधानिक और देश के मुद्दों की ओर निर्देशित होनी चाहिए।”
शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि संसद या राज्य विधानसभाएं हंगामा करने की जगह नहीं बल्कि एक ऐसा स्थान है, जहां नागरिकों के कल्याण के लिए नीतियां और कानून प्रतिपादित किए जाते हैं।
संसद और विधानसभाओं के प्रति आम लोगों की धारणाओं की चर्चा करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा,“यह बात आम हो गयी है कि सदन अपना सामान्य निर्धारित कार्य पूरा नहीं कर सका तथा अधिकांश समय रचनात्मकता के बजाय एक दूसरे के खिलाफ उपहास और व्यक्तिगत हमलों में बिताया गया था।”
पीठ ने कहा कि कई सांसदों और विधान सभाओं के सदस्यों के इस प्रकार के व्यवहार हमे दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता और सबसे बड़े लोकतंत्र होने के दावों के विपरीत लगती है।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में 12 विधायकों को कथित दुर्व्यवहार के आरोप में निलंबन के संदर्भ में कहा कि सदन का कीमती समय को समझते हुए जटिल मुद्दों को भी सौहार्दपूर्ण माहौल में एक-दूसरे के प्रति पूर्ण सम्मान और सम्मान दिखाते हुए हल करना चाहिए।...////...