05-Nov-2022 09:57 PM
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नयी दिल्ली, 05 नवंबर (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय नौकरियों और शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा।
मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला संविधान पीठ ईडब्ल्यूएस को आरक्षण प्रदान करने वाले 103 वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) ‘जनहित अभियान’ और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी।
मुख्य न्यायाधीश ललित की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आरक्षण पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सात दिन की लंबी सुनवाई के बाद 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष अदालत की वेबसाइट के मुताबिक, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति भट इस मामले में दो अलग-अलग फैसले सुनाएंगे।
शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए ईडब्ल्यूएस आरक्षण के प्रावधान का समर्थन किया था।
सर्वोच्च अदालत के समक्ष केंद्र सरकार ने दावा किया था कि 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी /एसटी) अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) और सामान्य श्रेणी के तय 50 फीसदी आरक्षण में नहीं आता है। सरकार ने अदालत को बताया था कि उसने सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को सीटों की संख्या में 25 फीसदी की वृद्धि करने का निर्देश दिया है। सरकार ने कहा था कि शिक्षण संस्थाओं में 4,315.15 करोड़ रुपये की लागत से कुल 2.14 लाख अतिरिक्त सीटों की मंजूरी दी गई है। इस ईडब्ल्यूएस आरक्षण से एससी /एसटी और ओबीसी को मिल रहे 50 फीसदी आरक्षण में किसी प्रकार की कटौती नहीं की गई है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने तर्क देते हुए दावा किया था कि 103वां संशोधन अनुच्छेद 15(4) और 16(4) द्वारा हासिल की जाने वाली वास्तविक समानता को समाप्त और नष्ट कर देता है तथा समाज में एससी, एसटी और ओबीसी को पूर्व संवैधानिक स्थिति में वापस ले जाता है।...////...