आपातकाल: स्‍वर्णिम लोकतंत्र का काला अध्‍याय
26-Jun-2025 12:00 AM 732

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और संविधान लोकतंत्र का रक्षक, क्योंकि संविधान लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता की आधारशिला है, किंतु 25 जून 1975 से 31 मार्च 1977 तक का कालखंड ऐसा था, जब देश में सत्ताधारी नेताओं द्वारा इन सभी मूल्यों का गला घोंटा गया। संवैधानिक शब्दावली में इस कालखंड को आपातकाल कहा गया परंतु इतिहास में इसे ‘स्वर्णिम लोकतंत्र के काले अध्याय’ के रूप में जाना जाता है। इस अवधि में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए न केवल संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया, बल्कि नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को स्थगित करके भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर भी कुठाराघात किया।

1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर भारी बहुमत से चुनाव अवश्य जीता, लेकिन 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रायबरेली से उनके निर्वाचन अवैध घोषित कर दिया और 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिये भी अयोग्य ठहरा दिया। उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने श्रीमती इंदिरा गांधी के पद को खतरे में डाल दिया। अपनी सत्ता को बचाने की लाचारी और राजनीतिक वर्चस्व की भूख ने लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्वस्त करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। आपातकाल का यह निर्णय किसी राष्ट्रीय संकट के कारण नहीं बल्कि श्रीमती गांधी की सत्ता लोलुपता से प्रेरित था। संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आंतरिक अशांति का बहाना बनाकर उन्होंने देश को आपातकाल के अंधकार में धकेल दिया।

संवैधानिक प्रावधानों के तहत देश में आपातकाल मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाना चाहिए, परंतु श्रीमती गांधी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने 26 जून 1975 को सुबह 6:00 केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर मंत्रियों को बताया कि मध्य रात्रि के बाद से देश में आपातकाल लगा दिया गया है। कुल मिलाकर देश में आपातकाल लागू करने के बाद और देश को यह सूचना देने से पहले श्रीमती गांधी ने मंत्रिमंडल की महज औपचारिक सहमति प्राप्त की, जो उनकी तानाशाही को दर्शाता है। आपातकाल लागू करते ही इंदिरा गांधी की तानाशाही शुरू हो गई। उन्होंने देश में नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया। श्रीमती गांधी द्वारा राष्‍ट्रवादी विचारधारा को कुचलने का कार्य किया। लोकतंत्र को बचाने के लिये प्रतिरोध करने वालों के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये। जनसंघ और अन्य विपक्षी दलों से जुड़े नेताओं को गिरफ्तार कर ‘मीसा’ अर्थात आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाल दिया गया जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी जैसे अनेक वरिष्ठ नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। एक अनुमान के मुताबिक बिना सुनवाई के लगभग 01 लाख 40 हजार से अधिक लोगों को जेल में बंद कर दिया गया। लोकतंत्र की सबसे जरूरी विशेषता ‘वैकल्पिक विचार’ को श्रीमती इंदिरा गांधी ने राजद्रोह में बदल दिया।

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