जातियों के वर्गीकरण में हुआ भेदभाव, निराकरण आयोग बनाये सरकार : सुशील
08-Oct-2023 05:59 PM 2447
पटना 08 अक्टूबर (संवाददाता) बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने आज कहा कि बिहार के जातीय सर्वे में कुछ जातियों को कम और कुछ खास जातियों को उनकी उपजातियों को जोड़कर ज्यादा दिखाने जैसी कई गंभीर शिकायतें मिल रही हैं इसलिए इसके निराकरण और जातियों का नया वर्गीकरण करने के लिए सरकार को उच्च न्यायालय के किसी अवकाशप्रात न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग गठित करना चाहिए। श्री मोदी ने रविवार को जारी बयान में कहा कि सर्वे में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर, सदगोप जैसी दर्जन-भर यदुवंशी उपजातियों को एक जातीय कोड "यादव" देकर इनकी आबादी 14.26 फीसद दिखायी गई। उन्होंने कहा कि कुर्मी जाति की आबादी को भी घमैला, कुचैसा, अवधिया जैसी आधा दर्जन उपजातियों को जोड़कर 2.87 फीसद दिखाया गया। भाजपा सांसद ने कहा कि क्या यह संयोग है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की जाति को उपजातियों-सहित गिना गया, जबकि वैश्य, मल्लाह, बिंद जैसी जातियों को उपजातियों में खंडित कर इऩकी आबादी इतनी कम दिखायी गई कि इन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो। उन्होंने कहा कि बनिया (वैश्य) जाति की आबादी मात्र 2.31 फीसद दिखाने के लिए इसे तेली, कानू, हलवाई, चौरसिया जैसी 10 उपजातियों में तोड़कर दिखाया गया। यदि उपजातियों को जोड़कर एक कोड दिया गया होता तो बनिया की आबादी 9.56 प्रतिशत होती। श्री मोदी ने कहा कि मल्लाह जाति को 10 उपजातियों में तोड़कर इनकी आबादी 2.60 फीसद दर्ज की गई। उपजातियों को जोड़ने पर मल्लाह जाति की आबादी 5.16 फीसद होती। उन्होंने कहा कि नोनिया जाति की आबादी 1.9 प्रतिशत दर्ज हुई जबकि इनकी बिंद, बेलदार उपजातियों को जोड़कर आबादी 3.26 प्रतिशत होती है। भाजपा सांसद ने कहा कि कुछ चुनिंदा जाति-धर्म के लोगों की गिनती में सरकार ने एक साजिश के तहत "उपजाति-जोड़ो" फार्मूला लगाया, तो कई अन्य जातियें के लिए "उपजाति-तोड़ो" फार्मूला अपनाया। उन्होंने कहा कि यह भेदभाव किसके आदेश से हुआ, इसकी जांच होनी चाहिए।...////...
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