ओएसओपी योजना से सृजित हुए डेढ़ लाख रोजगार
14-Nov-2023 09:08 PM 9072
नयी दिल्ली, 14 नवंबर (संवाददाता) भारतीय रेलवे के स्टेशनों पर 'एक स्टेशन एक उत्पाद' योजना के क्रियान्वयन के डेढ़ साल में एक हजार से अधिक स्टेशनों पर 1100 से ज्यादा स्थानीय उत्पादों को देश व्यापी बाजार मिला है और करीब डेढ़ लाख लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही करीब 50 करोड़ रुपये का कारोबार सृजित हुआ है। रेलवे की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में एक स्टेशन एक उत्पाद (ओएसओपी) योजना की घोषणा की गई थी। इस योजना का उद्देश्य देश भर के रेलवे स्टेशनों पर बिक्री आउटलेट के प्रावधान के माध्यम से स्थानीय कारीगरों, कुम्हारों, बुनकरों/हथकरघा बुनकरों, शिल्पकारों आदि को कौशल विकास के माध्यम से बढ़ी हुई आजीविका के अवसर प्रदान करना था। इस योजना का पायलट प्रोजेक्ट 25 मार्च 2022 को 19 स्टेशनों पर 15 दिनों के लिए शुरू किया गया था। पायलट परियोजनाओं से प्राप्त अनुभव के आधार पर, ओएसओपी नीति 2022 बनाई गई जिसे 20 मई 2022 को जारी किया गया। गत नौ नवंबर तक, 1037 स्टेशनों पर 1134 ओएसओपी आउटलेट चालू हैं। इनके माध्यम से कुल 39 हजार 847 प्रत्यक्ष लाभार्थियों ने इस योजना के तहत दिए जा रहे अवसरों का लाभ उठाया है। प्रति आवंटन 5 की दर से अप्रत्यक्ष लाभार्थियों को मानते हुए, कुल लाभार्थी एक लाख 43 हजार 232 होते हैं। अब तक कुल 49.58 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की गई है। ओएसओपी योजना के तहत, भारतीय रेलवे, स्वदेशी/स्थानीय उत्पादों को प्रदर्शित करने, बेचने और बाजार उपलब्ध कराने के लिए स्टेशनों पर विशिष्ट रूप, अनुभव और लोगो के साथ विशिष्ट रूप से डिजाइन किए गए बिक्री आउटलेट प्रदान कर रहा है। आउटलेट का आवंटन सभी आवेदकों को लॉटरी के माध्यम से निविदा प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। उन्हें स्टेशनों पर रोटेशन के आधार पर आउटलेट आवंटित किया जाता है। ओएसओपी नीति में यह परिकल्पना की गई है कि इस योजना का लाभ लक्ष्य समूहों यानी निचले स्तर पर मौजूद लोगों तक पहुंचना चाहिए और सभी आवेदकों को अवसर प्रदान करना चाहिए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, रेलवे अधिकारियों द्वारा समाचार पत्रों में विज्ञापन, सोशल मीडिया, सार्वजनिक घोषणाएं, प्रेस सूचनाएं, कारीगरों से व्यक्तिगत मुलाकात आदि सहित विभिन्न सार्वजनिक उपाय अपनाए गए हैं। उत्पादों की श्रेणी उस स्थान के लिए स्वदेशी/स्थानीय होना निश्चित किया गया है और इसमें स्थानीय कारीगरों, बुनकरों, शिल्पकारों, जनजातियों द्वारा बनाई गई कलाकृतियाँ, हस्तशिल्प, कपड़ा और हथकरघा, खिलौने, चमड़े के उत्पाद, पारंपरिक उपकरण / उपकरण, वस्त्र, रत्न और आभूषण आदि तथा क्षेत्र में स्वदेशी रूप से निर्मित/उगाए गए प्रसंस्कृत, अर्ध प्रसंस्कृत और अन्य खाद्य उत्पाद शामिल हैं।...////...
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