पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने 09 मई के दंगे में नागरिकों की सैन्य सुनवाई को किया निरस्त
23-Oct-2023 08:15 PM 5873
इस्लामाबाद 23 अक्टूबर (संवाददाता) पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट (एससी) एक पांच सदस्यीय पीठ ने सोमवार को देश में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद हुए दंगों में शामिल संदिग्ध नागरिकों के खिलाफ सैन्य अदालत में मुकदमा चलाये जा रहे संविधान विरुद्ध बताते हुए बहुमत के अधार पर निरस्त कर दिया। इस मामले की सुनवाई न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ कर रही है। देश में नौ मई को हुई हिंसक प्रदर्शनों के संबंध में लोगों का गिरफ़्तार किया गया था और उनके खिलाफ सेना ने मुकदमा चलाने की कार्रवाई शुरू की थी। पीठ ने आज सैन्य सुनवाई को गैर कानूनी करार देते हुए इसे निरस्त कर दिया। जबकि सरकार की ओर से कहा गया था कि सैन्य कानून के तहत सैन्य अदालत इन मामलों की सुनवाई कर सकती है और सुनवाई के दौरान सामान्य अदालतों में सुनवाई के लिए अपनायी जाने वाली शर्ताें का पालन किया जाएगा और उसके फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने कुछ घंटे पूर्व सुनवाई पूरी करने के बाद निर्णय को सुरक्षित रख दिया था। न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन की अध्यक्षता में मामले को सुनने वाली पीठ में न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर, न्यायमूर्ति यायहा अफरीदी, न्यायमूर्ति सैय्यद मजाहर अली अकबर नकवी और न्यायमूर्ति आयशा ए मलिक शामिल थे। पीठ में 4-1 के बहुमत से फैसले में कहा कि 09 मई के दंगों में संदिग्ध व्यक्तियों के खिलाफ केवल सामान्य अदालतों में ही मुकदमा चलाया जा सकता है। न्यायमूर्ति अफरीदी ने बहुमत के फैसले से असहमति दर्ज की। अदालत ने सैन्य अधिनियम की धारा 2(1)(डी) को भी संविधान विरुद्ध बताया, इस धारा में सैन्य कानून के तहत आने वाले व्यक्तियों को परिभाषित किया गया है। अदालत ने इस कानून की धारा 59(4) (सिविल अपराध) को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया है। पाकिस्तान सेना अधिनियम की धारा 2(1)(डी) में कहा गया कि इस अधिनियम के तहत सरकार या सेनाओं के खिलाफ निष्ठा कमजोर करने के लिए दूसरों को प्रेरित करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ भी सैन्य कानून के तहत भले ही वह सेना के अंतर्गत सीधे न आते हो। पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) मंसूर उस्मान अवान आज सुनवाई की शुरुआत में कहा कि वह इस बात पर तर्क पेश करेंगे कि इस मामले में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता क्यों नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि सैन्य अदालतों में मुकदमा सामान्य आपराधिक अदालतों की सभी शर्ताें को पूरा करता है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों पर सैन्य अदालत में सुनवाई शुरू हो चुकी है और उसके फैसलों को तर्क पूर्ण विवरण के साथ सुनाया जाएगा। एजीपी ने कहा कि प्रतिबंधित क्षेत्र या इमारत पर हमले से संबंधित मामलाें की सुनवाई सैन्य अदालतों में की जा सकती है। न्यायमूर्ति अहसन ने उनसे सवाल किया, “आतंकवादियों पर मुकदमा चलाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता थी, तो नागरिकों के लिए क्यों नहीं? मैं आपके तर्क को समझने की कोशिश कर रहा हूं।” एजीपी अवान ने कहा कि यदि आरोपियों का सशस्त्र बलों से ‘सीधा संबंध’ था, तो संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि संदिग्धों पर सैन्य अधिनियम की धारा 2(1)(डी)(2) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने कहा कि अदालत ने संदिग्धों के खिलाफ आरोप तय करने पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा, “सेना अधिनियम के तहत मुकदमे में आपराधिक मामले की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा।” उन्होंने कहा कि 09 मई के संदिग्धों की सुनवाई उसी तरह होगी जैसे आपराधिक अदालतों में की जाती है। एजीपी अवान ने कहा, “फैसले में तर्क दिया जाएगा और सबूत दर्ज किए जाएंगे।” उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 10-ए (निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार) के तहत निष्पक्ष सुनवाई की सभी शर्तें पूरी की जाएंगी। उन्होंने कहा कि फैसले के खिलाफ अपील उच्च न्यायालयों और उसके बाद शीर्ष अदालत में भी दायर की जा सकती है। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अहसन ने उन लोगों के बारे में पूछा जिन पर अतीत में सैन्य अदालतों द्वारा मुकदमा चलाया गया था। उन्होंने पूछा, “क्या 2015 के आरोपी नागरिक, विदेशी या आतंकवादी थे?” न्यायमूर्ति आयशा ने एजीपी से यह भी पूछा कि वह अपनी दलीलों को संविधान के अनुच्छेद 8(3) से कैसे जोड़ेंगे। उन्होंने कहा, “कानून के मुताबिक सैन्य अदालतों में सुनवाई के लिए व्यक्ति का सशस्त्र बलों से संपर्क जरूरी है।” न्यायमूर्ति अहसन ने टिप्पणी की कि संविधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।...////...
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