सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की रिट याचिका खारिज की
07-Aug-2025 09:59 PM 2394
नयी दिल्ली, 07 अगस्त (संवाददाता) उच्चतम न्यायालय ने कथित नगदी बरामदगी के आरोपों से घिरे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की रिट याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाया और अपने फैसले में छह प्रश्न तय किए। पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 30 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था। पीठ की ओर से न्यायमूर्ति दत्ता ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना की जांच के लिए आंतरिक जांच समिति का गठन और उसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया गैरकानूनी नहीं थी। आंतरिक प्रक्रिया को कानूनी मान्यता प्राप्त है। यह कोई समानांतर या संविधानेतर व्यवस्था नहीं है। पीठ ने कहा कि कार्यवाही के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता क्योंकि उन्होंने आंतरिक जाँच कार्यवाही में भाग लिया था। पीठ ने कहा, “हमने माना है कि मुख्य न्यायाधीश और आंतरिक समिति ने तस्वीरें और वीडियो अपलोड (शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर) करने के अलावा पूरी प्रक्रिया का पूरी ईमानदारी से पालन किया था।” पीठ ने हालांकि यह भी कहा कि इससे बचा जा सकता था। अदालत ने आगे कहा, 'मुख्य न्यायाधीश (शीर्ष अदालत के) द्वारा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र भेजना (पद से हटाने के बारे में) असंवैधानिक नहीं था। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश करने से पहले सुनवाई का अवसर न देना किसी भी प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं है क्योंकि ऐसी सुनवाई को अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने हालांकि कहा कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (शीर्ष अदालत) और जाँच समिति ने प्रक्रिया का पूरी ईमानदारी से पालन किया, लेकिन 14 मार्च, 2025 की रात को न्यायमूर्ति वर्मा के आवासीय परिसर में नकदी जलाने से संबंधित वीडियो अपलोड करने से बचा जा सकता था। पीठ ने यह भी कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा दायर रिट याचिका उनके आचरण को देखते हुए विचारणीय नहीं है, जो विश्वास पैदा नहीं करता। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अदालत को इस रास्ते पर सावधानी से चलना होगा ताकि भविष्य की किसी भी कार्यवाही में कोई भी टिप्पणी न्यायाधीश के प्रति पूर्वाग्रह न पैदा करे। पीठ ने हालांकि यह भी कहा, “भविष्य में जरुरत पड़ने पर आपके (न्यायमूर्ति वर्मा) लिए कार्यवाही शुरू करने का विकल्प खुला है।” शीर्ष अदालत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने 22 मार्च, 2025 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी, जिसमें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थीं। समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा सहित 55 गवाहों के बयानों का विश्लेषण करने और 10 दिनों की जाँच के बाद 3 मई, 2025 को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति खन्ना ने आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी, क्योंकि न्यायमूर्ति वर्मा ने कथित तौर पर पद छोड़ने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति वर्मा ने उस आंतरिक जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें दोषी ठहराते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से उन्हें (न्यायमूर्ति वर्मा) को पद से हटाने की सिफारिश की गई थी। न्यायमूर्ति वर्मा के दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहने के दौरान राजधानी स्थित उनके सरकारी आवास पर 14 मार्च को कथित तौर पर भारी मात्रा में नगदी बरामद होने के बाद आंतरिक जांच की गई थी। इसके बाद उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया था।...////...
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