विकासशील देशों को दोहरे मापदंडों का दंश झेलना पड़ा है, वैश्विक संस्थानों में मिले उचित जगह-मोदी
06-Jul-2025 10:04 PM 1898
रियो डी जेनेरियो/नयी दिल्ली 06 जुलाई (संवाददाता) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकासशील देशों को दोहरे मापदंडों का शिकार बताते हुए कहा है कि इन देशों के हितों को कभी प्राथमिकता नहीं दी गयी और उन्हें वैश्विक संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिये जाने से इन संस्थानों के पास 21 वीं सदी की चुनौतियों का समाधान नहीं है। श्री मोदी ने रविवार शाम 17 वें ब्रिक्स सम्मेलन में वैश्विक शासन से संबंधित सत्र में जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि विकासशील देशों को वैश्विक संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा अपने हितों से ऊपर उठकर मानवता के हित में काम करना अपना दायित्व समझा है। उन्होंंने कहा कि भारत ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर सभी विषयों पर रचनात्मक योगदान देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। विकासशील देशों के साथ होते आये भेदभाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन देशों को अक्सर दोहरे मापदंडोंं का दंश झेलना पड़ा है। उन्होंने कहा ,'ग्लोबल साउथ अक्सर दोहरे मापदंडों का शिकार रहा है। चाहे विकास की बात हो, संसाधनों का वितरण हो, या सुरक्षा से जुड़े विषय हों, ग्लोबल साउथ के हितों को प्राथमिकता नहीं मिली है। जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी तक पहुंच जैसे विषयों पर ग्लोबल साउथ को अक्सर प्रतीकात्मक हिस्सेदारी के अलावा कुछ नहीं मिला।' वैश्विक संस्थानों में विकासशील देशोंं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि इन देशों को कभी निर्णय लेने वाली मेजों पर बैठने का अवसर नहीं दिया गया। बिना विकासशील देशों के इन संस्थानों का कोई औचित्य नहीं है। इनका वजूद बिना सिम के मोबाइल फोन जैसा है। उन्होंने कहा , '20 वीं सदी में बने ग्लोबल संस्थानों में मानवता के दो-तिहाई हिस्से को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। जिन देशों का, आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है, उन्हें निर्णय लेने वाली टेबल पर बिठाया नहीं गया है। यह केवल प्रतिनिधित्व का प्रश्न नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशाीली होने का भी प्रश्न है। बिना ग्लोबल साथ के ये संस्थाएँ वैसी ही लगती हैं जैसे मोबाइल में सिम तो है, पर नेटवर्क नहीं। यह संस्थान, 21 वीं सेंचुरी की चुनौतियों से निपटने में असमर्थ हैं। विश्व के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे संघर्ष हों, महामारी हों, आर्थिक संकट हों, या साइबर और स्पेस में नयी उभरती चुनौतियाँ, इन संस्थानों के पास कोई समाधान नहीं है।' बदलती परिस्थितियों में बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की जरूरत पर देते हुए उन्होंने वैश्विक संस्थानों मेंं सुधारोंं तथा विकासशील देशों की चुनौतियों को प्राथमिकता दिये जाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंंने कहा , 'आज विश्व को नए बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की जरूरत है। इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थानों में व्यापक सुधारों से करनी होगी। सुधार केवल सांकेतिक नहीं होने चाहिए, बल्कि इनका वास्तविक असर भी दिखना चाहिए। शासकीय ढांचे , मताधिकार और नेतृत्व में बदलाव आना चाहिए। ग्लोबल साउथ के देशों की चुनौतियों को नीति निर्माण में प्राथमिकता देनी चाहिए।' ब्रिक्स को समय के अनुसार बदलने की क्षमता रखने वाला संगठन बताते हुए उन्होंने कहा , 'ब्रिक्स का विस्तार, नए मित्रों का जुड़ना, इस बात का प्रमाण है कि ब्रिक्स एक ऐसा संगठन है, जो समय के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता रखता है। अब यही इच्छाशक्ति हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और बहुपक्षीय विकास बैंक संस्थानों में सुधार के लिए दिखानी होगी। ए आई के युग में, जहां हर हफ्ते टेक्नॉलजी उन्नत होती है,ऐसे में ग्लोबल इन्स्टिट्युशन का अस्सी वर्ष में एक बार भी अपडेट न होना स्वीकार्य नहीं है। इक्कीसवीं सदी की सोफ्टवेयर को बीसवीं सदी के टाइपराईटर से नहीं चलाया जा सकता।' श्री मोदी ने उम्मीद जतायी कि ब्राजील की अध्यक्षता में ब्रिक्स देशों के सहयोग को नयी गति और ऊर्जा मिलेगी। उन्होंने इंडोनेशिया के ब्रिक्स परिवार में शामिल होने के लिए वहां के राष्ट्रपति को बधाई भी दी। प्रधानमंत्री ने कहा , '17 वीं ब्रिक्स समिट के शानदार आयोजन के लिए मैं राष्ट्रपति लूला का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। ब्राजील की अध्यक्षता में ब्रिक्स के अंतर्गत हमारे सहयोग को नई गति और उर्जा मिली है। जो नई ऊर्जा मिली है — वो डबल एस्प्रेसो है, इसके लिए मैं राष्ट्रपति लूला की दूरदर्शिता और उनकी अटूट प्रतिबद्धता की सराहना करता हूँ। इंडोनेशिया के ब्रिक्स परिवार से जुड़ने पर मैं अपने मित्र, राष्ट्रपति प्रबोवो को भारत की ओर से बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ।...////...
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